धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—450

एक व्यापारी बुरी आदतों का शिकार था। वह चाहता था कि इनसे मुक्ति मिल जाए, किंतु बहुत प्रयास के बावजूद ऐसा नहीं हो पाया। फिर उसे किसी ने गांव में आए सिद्ध संत के बारे में बताया। वह तत्काल उनके पास पहुंचा और अपने विषय में सब कुछ बताकर पूछा- “मेरी बुरी आदतें कैसे छूटेंगी ?

किंतु संत ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। व्यापारी भी धुन का पक्का था। उसने प्रतिदिन संत के पास आकर पूछना जारी रखा। संत ने भी उसे कई दिन तक टाला। एक दिन जब वह जिद पर उतरा तो संत बोले- ‘मैं तुम्हें क्‍या मार्ग दिखाऊं? तुम्हारा जीवन अब चालीस दिनों से अधिक नहीं है। इतने कम समय में तुम कैसे सुधरोगे? यह सुनते ही व्यापारी तनाव में घिर गया। इसके बाद चालीस दिनों तक वह दुख, भय, प्रश्चात्ताप और भजन पूजन में लगा रहा।

चालीस दिन खत्म होने में जब एक दिन शेष बचा तो संत ने उसे बुलाकर पूछा- ‘इन चालीस दिनों में कितनी बार तुमने दुष्टतापूर्ण कर्म किए ? व्यापारी बोला- ‘हैरानी की बात है कि इतने दिनों में एक बार भी मेरे मन में कोई गलत विचार नहीं आया। मन पर हर क्षण मृत्यु का डर बना रहा।

तब संत ने उसे समझाया- “बुराईयों से बचने का एकमात्र उपाय है कि हर क्षण मृत्यु को याद रखो और ऐसे काम करो, जिनसे आत्मा को सुकून मिले। व्यापारी संत के सुधार का तरीका समझ गया और उनके प्रति आभार व्यक्त कर निष्पाप जीवन जीने का संकल्प लिया।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, मानंव-जीवन क्षणभंगुर है इसलिए सदैव सद्चिन्तन और सत्कर्म करे।
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