धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—464

एक संत परम ज्ञानी थे, तर्क-वितर्क में कोई उनसे जीत नहीं सकता था। अपनी बात के पक्ष में सदैव उनके पास अकाट्य तर्क और ठोस प्रमाण होते थे। किसी को दुख, तकलीफ में देखते थे तो तुरन्त उसकी मदद करते थे। उनकी इस नैसर्गिक प्रतिभा के कारण वे आम जनता के बीच आदरणीय थे, वहीं बौद्धिक जगत में उनके प्रति ईर्ष्या रखने वाले भी कम नहीं थे।

ऐसे ही ईर्ष्यालुओं ने एक बार संत को शास्त्रार्थ हेतु आमंत्रित किया। दूर-दूर से उन्होंने विद्वानों की फौज बुला ली, ताकि संत को पराजित किया जा सके। जब संत मंच पर पहुंचे तो अचानक श्रोताओं में से एक व्यक्ति को पेट में जोर से दर्द होने लगा और वह दर्द से तड़पने-चिल्लाने लगा। संत तुरंत मंच से उतर गए और उस व्यक्ति के कष्ट निवारण का प्रयास करने लगे।

उन्हें ऐसा करते देख निंदकों ने कहना आरंभ कर दिया- महात्मा जी! आप तो यहां शास्त्रार्थ करने आए थे। उससे पीछे हट गए और सेवा करने लगे। ऐसा लगता है आप शास्त्रार्थ से घबरा रहे हैं।यह सुनकर संत ने शांत स्वर में कहा- समस्त प्राणियों को मैं अपना समझता हूं और उनकी दुख तकलीफ में नहीं देख सकता।

मित्रों! अगर आपके सामने आपका पुत्र इस प्रकार दर्द से तड़प रहा होता तो क्या आप विचलित न होते? यह सुनते ही निंदक वर्ग लज्जित होकर चुप हो गया तब संत बोले- ‘शास्त्रार्थ तो कोई भी कर लेगा, किंतु पीड़ितों की सेवा नहीं। मेरा कर्म पहले पीडितों की सेवां करना है, शास्त्रार्थ करना बाद में।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, प्रत्येक स्थिति में सहयोग की भावना रखकर सदैव यश से अधिक कर्म को प्रमुखता देनी चाहिए। कर्म का उचित रीति से पालन अनिवार्य रूप से यश दिलाता है।

Shine wih us aloevera gel

https://shinewithus.in/index.php/product/anti-acne-cream/

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—616

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—18

Jeewan Aadhar Editor Desk

‘बिश्नोई समाज संस्कार परीक्षा’ को समाज में मिल रहा अभूतपूर्व समर्थन

Jeewan Aadhar Editor Desk