धर्म

ओशो : स्वयं की खोज

स्मार्टा के बादशाह के पास एक व्यक्ति आया। वह बुलबुल की आवाज निकालने में इतना अधिक माहिर हो गया था कि मनुष्य की बोली वह भूल ही गया। उस व्यक्ति की बड़ी ख्याति थी और लोग, दूर-दूर से उसे देखने और सुनने आते थे। वह अपने कौशल का प्रदर्शन बादशाह के सामने भी करना चाहता था। बड़ी कठिनाई से वह बादशाह के सामने उपस्थित होने की आज्ञा पा सका। उसने सोचा था कि बादशाह उसकी प्रशंसा करेंगे और पुरस्कारों से सम्मानित भी। अन्य लोगों द्वारा मिली प्रशंसा और पुरस्कारों के कारण उसकी यह आशा उचित ही थी। लेकिन बादशाह ने उससे क्या कहा? बादशाह ने कहा, महानुभाव, मैं बुलबुल को ही गीत गाते सुन चुका हूं, मैं आपसे बुलबुल के गीतों कोसुनने की नहीं, वरन उस गीत को सुनने की आशा और अपेक्षा रखता हूं, जिसे गाने के लिए आप पैदा हुए हैं। बुलबुलों के गीतों के लिए बुलबुलें ही काफी है। आप जायें और अपने गीत को तैयार करें और जब वह तैयार हो जाए तो आवें। मैं आपके स्वागत के लिए तैयार रहूंगा और आपके लिए पुरस्कार भी तैयार रहेंगे।
निश्चय ही जीवन दूसरों की नकल करने के लिएनहीं, वरन स्वयं के बीज में जो छिपा है, उसे ही वृक्ष बनाने के लिए है। जीवन अनुकृतिनहीं, मौलिक सृष्टि है। इसलिए स्वयं को खोजो और स्वयं को पाओ। जब भी कोई किसी बाहरी व्यक्ति को देखकर अपना व्यक्तित्व ढालता है, वह वास्तव में बहरुपिया ही बन जाता है। उसकी मौलिकता दूर हो जाती है।

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—285

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस स्वामी सदानंद के प्रवचनों से-2

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—457

Jeewan Aadhar Editor Desk