धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 647

बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गाँव में गोपाल नाम का एक गरीब किसान रहता था। उसके पास थोड़ी-सी जमीन थी, लेकिन लगातार सूखा पड़ने से फसल खराब हो जाती थी। घर की हालत इतनी खराब हो गई थी कि परिवार को दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो गया था।

एक दिन गाँव में एक वृद्ध संत पधारे। संत बहुत ज्ञानी और दयालु थे। गाँववाले उन्हें भोजन और जल देकर सेवा करने लगे। गोपाल भी संत के दर्शन करने पहुँचा। उसने नम्रता से कहा – “महात्मा जी, मैं बड़ा दुखी हूँ। मेहनत करता हूँ, परंतु सुख-समृद्धि का नाम नहीं। कृपा करके मुझे आशीर्वाद दें।”

संत मुस्कुराए और बोले – “बेटा, तुम्हें वरदान दूँगा, पर याद रखना – इसका उपयोग केवल अच्छे कार्यों में करना। लालच मत करना।”

फिर उन्होंने गोपाल को एक छोटी-सी मिट्टी की हंडी दी और कहा – “इस हंडी में जो भी अनाज डालोगे, वह दुगना हो जाएगा। लेकिन इसे जरूरत से ज्यादा पाने की लालसा में मत इस्तेमाल करना।”

गोपाल ने संत को प्रणाम किया और हंडी घर ले आया। उसने थोड़े-से चावल उसमें डाले, और देखते ही देखते चावल दुगने हो गए। अब उसके पास परिवार के लिए पर्याप्त अन्न होने लगा। धीरे-धीरे उसका घर समृद्ध हो गया।

लेकिन कुछ समय बाद उसके मन में लालच आ गया। उसने सोचा – “अगर मैं सोना डालूँ तो यह दुगना होकर मुझे बहुत धनवान बना देगा।”

उसने सोने की एक छोटी बाली हंडी में डाल दी। सचमुच, सोना दुगना हो गया। अब गोपाल दिन-रात धन बढ़ाने में लग गया।

एक दिन उसकी पत्नी ने समझाया – “संत ने चेतावनी दी थी कि लालच मत करना। वरना अनर्थ होगा।”

लेकिन गोपाल ने बात नहीं मानी। उसने लोभवश पूरी हंडी भरकर सोना डाल दिया। तभी अचानक हंडी फट गई और उसमें रखा सारा सोना गायब हो गया। गोपाल फिर से निर्धन हो गया।

तब उसे संत के शब्द याद आए – “वरदान तभी फलदायी होता है जब उसमें संयम और संतोष हो।” उस दिन से गोपाल ने मेहनत और ईमानदारी से जीवन बिताया और कभी लालच नहीं किया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, लालच मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। संतोष और परिश्रम से ही सच्चा सुख मिलता है।

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