धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—466

एक सरोवर में एक हंस और एक मछली रहते थे। दोनों के बीच अच्छी मित्रता थी। दोनों घंटों एक दूसरे के साथ समय बिताते। रात होने पर मछली सरोवर के तल पर चली जाती और हंस निकट के पेड़ पर सो जाता। सुबह होने पर हंस कहीं चला जाता और कुछ समय के बाद मछली से मिलने आता।

एक दिन मछली ने हंस से पूछा- “मित्र! तुम नित्य कहां जाते हो? हंस ने बताया- मैं समुद्र की ओर जाता हूं। वहां बहुत सारी सीप होती हैं। उन सीपों में से जिस सीप में मोती निकलता है, मुझे उसकी तलाश होती है, क्योंकि मेरी खुराक मोती ही है।

मैं हंस हूं, सिर्फ मोती ही खाता हूं।’ यह सुनकर मछली बोली- मित्र! मुझे भी समुंद्र देखना है कि वह कैसा होता है। मछली की उत्कट अभिलाषा देखकर हंस ने कहा- यहां से थोड़ी दूर एक नदी है। बारिश के दिनों में सरोवर का पानी नदी की ओर जाएगा तो तुम नदी में चली जाना।

नदी समुद्र में जाकर मिलती है, फिर तुम नदी के रास्ते समुद्र में चली जाना। एक दिन जब जोरदार बारिश हुई तो सरोवर का पानी बढ़कर नदी तक पहुंच गया और इस तरह मछली नदी में पहुंच गई। नदी का बहाव उसे समुद्र तक ले गया।

मछली ने समुद्र में देखा कि वहां पर लाखों मछलियां तथा कई अन्य खतरनाक जीव हैं। वहां उसका कोई मित्र नहीं था। वहां उसने देखा बडी मछलियां व खतरनाक जीव छोटी मछलियों को खा रहे थे। वह किसी तरह वहां अपनी जान बचा पा रही थी। लेकिन उसे पता था कि अब वो यहां किसी ना किसी जीव का शिकार अवश्य बन जाएगी। अब उसे रह-रहकर अपने मित्र हंस की याद सताने लगी, लेकिन सरोवर तक जाने का अब कोई मार्ग नहीं था।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, कई बार कुछ बड़ा पाने की महत्त्वाकांक्षा हमारी छोटी-छोटी खुशियों को भी छीन लेती हैं। इसलिए अनुपलब्ध के प्रति अत्यधिक आग्रह न रखें और उपलब्ध में ही संतुष्ट रहें। अगर आपको जीवन में तरक्की के रास्ते पर जाना है तो सोच-समझकर सही पथ चुने और एक-एक सीढी चढें।

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