धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—167

बासमती चावल बेचने वाले एक सेठ की स्टेशन मास्टर से साँठ-गाँठ हो गयी। स्टेशन मास्टर ट्रैन में आने वाला चावल चुरा लेता सेठ को आधी कीमत पर बासमती चावल बेचने लगा। सेठ ने सोचा कि इतना पाप हो रहा है, तो कुछ धर्म-कर्म भी करना चाहिए।

एक दिन उसने बासमती चावल की खीर बनवायी और एक अच्छे विरक्त साधु बाबा को आमंत्रित कर भोजन का प्रसाद लेने के लिए प्रार्थना की। साधु बाबा उसकी प्रार्थना को स्वीकार करके प्रसाद लेने के लिए आ गए और बासमती चावल की खीर खायी। दोपहर का समय था। सेठ ने कहाः “बाबा जी ! अभी आप आराम कीजिए। थोड़ी धूप कम हो जाय.. फिर पधारियेगा।” साधु बाबा ने बात स्वीकार कर ली।

सेठ को किसी से पेमेंट मिली थी ₹10 लाख, जिसमें ₹100-100 की गड्डियां थी। यह रकम उसी कमरे में रखी हुए थी जहां साधु बाबा विश्राम कर रहे थे। साधु बाबा आराम करने लगे। खीर थोड़ी हजम हुई । साधु बाबा के मन में आया कि इतनी सारी गड्डियाँ पड़ी हैं, एक-दो उठाकर झोले में रख लूँ तो किसी को क्या पता चलेगा?

फिर मन में आया की मैं साधु हूं, मेरे को क्या जरूरत है इन पैसों की। लेकिन मन तो मन है, मन में दोबारा उल्लेख आया एक-दो गड्डी उठा लेता हूं किसी को क्या पता चलेगा। साधु बाबा ने एक गड्डी उठाकर रख ली। शाम हुई तो सेठ को आशीर्वाद देकर चल पड़े।

सेठ दूसरे दिन रूपये गिनने बैठा तो 1 गड्डी (दस हजार रुपये) कम निकली। सेठ ने सोचा कि महात्मा तो भगवतपुरुष थे, वे क्यों लेंगे.? सेठ थोड़ा कड़क था तो उसने सोचा कि नौकरों की ही करामात है। नौकरों की धुलाई-पिटाई चालू हो गयी। ऐसा करते-करते दोपहर हो गयी। इतने में साधु बाबा आ पहुँचे तथा अपने झोले में से गड्डी निकाल कर सेठ को देते हुए बोलेः “नौकरों को मत पीटना, गड्डी मैं ले गया था।”

सेठ ने कहाः “बाबा जी! आप क्यों लेंगे ? जब यहाँ नौकरों से पूछताछ शुरु हुई तब कोई भय के मारे आपको दे गया होगा। और आप नौकर को बचाने के उद्देश्य से ही वापस करने आये हैं क्योंकि साधु तो दयालु होते है।” साधु: “यह दयालुता नहीं है। मैं सच में तुम्हारी गड्डी चुराकर ले गया था।” साधु ने कहा: “सेठ …तुम सच बताओ कि तुमने कल खीर किसकी और किसलिए बनायी थी ?”

सेठ ने सारी बात बता दी कि स्टेशन मास्टर से चोरी के चावल खरीदता हूँ, उसी चावल की खीर थी। साधु बाबाः “चोरी के चावल की खीर थी इसलिए उसने मेरे मन में भी चोरी का भाव उत्पन्न कर दिया। सुबह जब पेट खाली हुआ, तेरी खीर का सफाया हो गया तब मेरी बुद्धि शुद्ध हुई।
“हे भगवान …. यह क्या हो गया? मेरे कारण बेचारे नौकरों पर न जाने क्या बीत रही होगी । इसलिए तेरे पैसे लौटाने आ गया।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, अन्न सदा शुद्ध खाना चाहिए। अशुद्ध अन्न स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है तो गलत तरीके से आया अन्न बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है। इसीलिए कहते हैं कि….
जैसा खाओ अन्न… वैसा होवे मन !
जैसा पीओ पानी…वैसी होवे वाणी !
जैसी शुद्धी… वैसी बुद्धि !
जैसे विचार… वैसा संसार !

इसलिए हमेशा यह बात ध्यान में रखो कि नीति मार्ग से धन कमाओ, उसी का भोजन करो और उसी का दान करो।

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Jeewan Aadhar Editor Desk