धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—479

एक जातक कथा है। एक देश के राजा को शिकार खेलने का बहुत शौक था। वह प्रतिदिन शिकार खेलने जंगल जाता था। रोज वह किसी न किसी जंगली जानवर का शिकार करता। जंगल के जानवर बहुत परेशान थे। एक बार जंगल में राजा शिकार के लिए गया। वह जंगल में एक ऐसे स्थान पर पहुंचा जहां चींटियों की बिलें थीं।

राजा के घोड़े के पैरों से चींटियों की बिलें नष्ट हो गईं। अनेक चींटियां मारी गई और उनके अंडे भी नष्ट हो गए। अपनी जाति और वंश को तहस-नहस हुआ देख चींटियों के सरदार को बहुत गुस्सा आया। उसने राजा से बदला लेने की ठानी।

उसने सभी चींटियों को एकत्रित किया और कहा हम राजा से युद्ध करके उससे बदला लेंगे। वह अपनी चींटियों की सेना लेकर राजा के महल की ओर चल पड़ा। चींटियों के राजा को रास्ते में बंदर मिला। बंदर ने पूछा- सरदार! यह चींटियों की सेना लेकर कहां जा रहे हो?

चींटियों का सरदार बोला- ‘मैं राजा से युद्ध करने जा रहा हूं। मैं उससे बदला लूंगा।’ बंदर ने यह बात सारे जंगल में तुरंत फैला दी। जंगल के समस्त जानवर चींटियों के सरदार के पास पहुंचे और कहा- हम सब इस युद्ध में तुम्हारा साथ देंगे। इस प्रकार एक बहुत बड़ी फौज चींटियों के सरदार के साथ चल पड़ी।

महल के द्वार पर पहुंचकर चींटियों के सरदार ने राजा को युद्ध के लिए ललकारा। राजा ने अपने महल की खिड़की से देखा, जंगली जानवरों की इतनी बड़ी फौज देखकर राजा घबरा गया। उसने अपने मंत्री को नीचे कारण जानने के लिए भेजा। मंत्री ने आकर राजा को बताया कि यह सब आपके शिकार करने की आदत से परेशान हैं और आपसे युद्ध करके आपको मारने के लिए आए हैं।

राजा ने मंत्री से सुझाव मांगा। मंत्री ने कहा- राजन! हम जानवरों की इस विशाल संगठित फौज से नहीं जीत सकते। हमें इनसे संधि कर लेनी चाहिए। राजा ने एक संधि प्रस्ताव भेजा कि आज से वह शिकार करना छोड़ देगा और उसके राज्य में सबके लिए जंगल में शिकार करना वर्जित कर दिया जाएगा। चींटियों के सरदार ने अन्य जानवरों से मशवरा करके इस संधि प्रस्ताव को मान लिया। इस प्रकार चींटियों के संगठित प्रयास ने इतने बड़े राजा को झुकने के लिए विवश कर दिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, संगठन में बड़ी ताकत है। मिल-जुलकर बड़ी से बड़ी विपत्ति का सामना आसानी से किया जा सकता है।

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