एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना के साथ जंगलों से होता हुआ जमदग्नि ऋषि के आश्रम में विश्राम करने के लिए पहुंचा। महर्षि जमदग्नि ने भी उसका खूब स्वागत सत्कार किया। ऋषि जमदग्नि के पास देवराज इंद्र से प्राप्त दिव्य गुणों वाली कामधेनु नामक चमत्कारी गाय थी। सहस्त्रार्जुन ने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु गाय की मांग की, लेकिन ऋषि ने गाय देने से इनकार कर दिया।
इस पर सहस्त्रार्जुन ने क्रोध में आकर ऋषि जमदग्नि के आश्रम को उजाड़ दिया और कामधेनु गाय को अपने साथ ले जाने लगा, लेकिन तभी कामधेनु सहस्त्रार्जुन के हाथों से छूट कर स्वर्ग की ओर चली गई। इसके बाद जब भगवान परशुराम अपने आश्रम पहुंचे तो अपने आश्रम को तहस-नहस देखकर क्रोध में आ गए और उन्होंने उसी वक्त सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना का नाश करने का संकल्प लिया। परशुराम भगवान शिव द्वारा दिए महाशक्तिशाली फरसे को साथ प्रचण्ड बल से सहस्त्रार्जुन की हजारों भुजाएं और धड़ परशु (फरसा) से काटकर कर उसका वध कर दिया।
सहस्त्रार्जुन के वध के बाद परशुराम अपने पिता ऋषि जमदग्नि के आदेशानुसार प्रायश्चित करने के लिए तीर्थ यात्रा पर चले गए। लेकिन, तभी मौका पाकर सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने तपस्यारत ऋषि जमदग्नि का उनके ही आश्रम में सिर काटकर उनका वध कर दिया। सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने आश्रम के सभी ऋषियों का भी वध करते हुए, आश्रम को जला दिया।
तभी माता रेणुका ने सहायता के लिए अपने पुत्र परशुराम को पुकारा। जब परशुराम माता की पुकार सुनकर आश्रम पहुंचे तो उन्होंने पिता का कटा सिर और उनके शरीर पर 21 घाव देखे। यह देखकर परशुराम क्रोधित हो उठे। उन्होंने शपथ ली कि वह हैहय वंश का ही नहीं बल्कि समस्त क्षत्रिय वंशों का 21 बार संहार कर भूमि को क्षत्रिय विहिन कर देंगे। उन्होंने अपने इस संकल्प को पूरा भी किया था, जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जो आतंक फैलाने का काम करता है उनका तुरंत विनाश करना चाहिए। यदि आतंक फैलाने वालो का सफाया नहीं किया जाता तो यह मानव समाज के लिए खतरनाक बन जाता है।