धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 551

एक बार एक संस्कृत के बहुत बड़े विद्वान श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी के पास आये व बातचीत के दौरन एक समस्या बताई। उन्होंने कहा कि मैं पहले पाकिस्तान में रहता था। 1947 में हमारा परिवार भारत में आ गया और आजकल मैं यहाँ पर एक आयुर्वेदिक दवाई की दुकान चलाता हूँ। उसमें ज्यादा कमाई तो नहीं है, बस किसी तरह से गाड़ी चल रही है। मेरे मन में एक सवाल जिसे पूछने के लिए मैं आपके पास आया हूँ। मैं रोज़ श्रीमद् भगवद् गीता पढ़ता हूँ। श्रीगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो मेरा भजन करता है उसका योग-क्षेम मैं वहन करता हूँ। जो कुछ उसके पास नहीं है उसे मैं देता हूँ और जो कुछ मेरे भक्त के पास है, उसकी रक्षा करता हूँ।

मैं तो भगवान श्रीकृष्ण का भक्त हूँ तो मेरा योग-क्षेम वे क्यों वहन नहीं करते? जब मेरे पोते मेरी दुकान पर आकर मुझ से कुछ पैसे माँगते हैं कुछ खाने की चीज लेने के लिए और उस समय मेरे पास पैसे ही नहीं होते? उससे मुझे बहुत दुःख होता है। मैं कई बार सोचता हूँ कि श्रीकृष्ण मेरा योग-क्षेम क्यों वहन नहीं कर रहे, जबकि मैं उनका भक्त हूँ?

श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी म्हाराज जी ने कहा- शास्त्री जी! आपने बताया कि आप संस्कृत के विद्वान हैं, आयुर्वेदिक कि दुकान चलाते हैं। बहुत अच्छा है। क्या आप मुझे अपनी दिनचर्या बता सकते हैं?

शास्त्री जी ने बताया कि मैं सुबह उठ जाता हूँ, स्नान कर घर में पूजा करता हूँ, पास में मन्दिर है वहाँ भी रोज जाता हूँ। वहाँ पर दुर्गा जी की मूर्ति है, उनके पास बैठ कर उनका पाठ करता हूँ, शिव स्तोत्र पढ़ कर शिव जी पर जल डालता हूँ, फिर हनुमान जी व गणेश जी की पूजा करता हूँ, घर आकर गीता पढ़ता हूँ। फिर कुछ नाश्ता करके मैं दुकान पर आ जाता हूँ। शाम के लिए भी मेरा यही क्रम है। अब आप ही मुझे बताइये कि सुबह-शाम इतनी पूजा करने के बाद भी श्रीकृष्ण मेर योग-क्षेम क्यों वहन नहीं करते हैं?

श्रील माधव महाराज – शास्त्री जी! आप तो विद्वान हैं। रोज ही श्रीगीता पढ़ते हैं। आपने यह जो प्रश्न किया कि श्रीकृष्ण अपने भक्त का योग-क्षेम वहन करते हैं।यह तो उस श्लोक का दूसरा वाक्य है। श्रीगीता के उस श्लोक का पहला वाक्य क्या है? आप कुछ देर उस पर विचार करें। उसमें लिखा है कि अनन्य भाव से मेरा जो भजन करता है..तो क्या आप अनन्य भाव से श्रीकृष्ण का भजन करते हैं?

शास्त्री कुछ बोले नहीं। उन्हें चुप देख महाराज जी ने कहा—श्रीगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है,जो एक-निष्ट होकर, अनन्य भाव से मेरा भजन करता है उसका मैं योग-क्षेम वहम करता हूँ। शास्त्री जी आपकी दिनचर्या के अनुसार क्या आप अनन्य भाव से उनका भजन करते हैं? क्या आप हमेशा श्रीकृष्ण से जुड़े रहते हैं? आप उस श्लोक के दूसरे वाक्य पर प्रश्न तो कर रहे हैं किन्तु पहले वाक्य पर आप ध्यान ही नहीं दे रहे हैं!

शास्त्री जी चुप हो गये, वे समझ गये कि पूजा तो मैं कर रहा हूँ किन्तु श्रीकृष्ण ने जैसा कहा वैसा नहीं कर रहा हूँ।
श्रीगीता का वो श्लोक है —
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानाँ योगक्षेमं वहाम्यहम् (श्री गीता 9-22)
अर्थात्, जो लोग अनन्य भाव से मेरे दिव्यस्वरूप का ध्यान करते हुए निरन्तर मेरी पूजा करते हैं, उनकी जो आवश्यकता होती हैं उन्हें मैं पूरा करता हूँ और जो कुछ उनके पास है, उसकी रक्षा करता हूँ।

धर्मप्रेमी संदरसाथ जी, अपना सब कुछ श्रीकृष्ण पर छोड़कर जो उनका ध्यान करता है फिर उसके जीवन का पूरा ध्यान श्रीकृष्ण स्वयं करते हैं। निस्वार्थ भाव से जो श्रीकृष्ण को पुकारते है—वो उसकी रक्षा अवश्य करते हैं।

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