बहुत समय पहले एक राजा के तीन पुत्र थे और उन तीनो पुत्रों में से वह किसी एक पुत्र को राजगद्दी देना चाहता था। पर किसे?
राजा ने एक तरकीब सोची और तीनों पुत्रों को बुलाकर कहा अगर तुम्हारे सामने कोई अपराधी खड़ा हो तो तुम उसे क्या सजा दोगे? पहले राजकुमार ने कहा की अपराधी को मौत की सजा देना चाहिए।
तो दूसरे ने कहा अपराधी को काल कोठरी में बंद कर देना चाहिए, जब तीसरे राजकुमार की बारी आई तो उसने कहा कि पिताजी पहले यह देख लेना चाहिए कि उसने गलती की भी है या नही।
इसके बाद उस राजकुमार ने उन तीनो को एक कहानी सुनाई। किसी राज्य में एक राजा हुआ करता था उसके पास एक बहुत ही सुंदर सा तोता था।
वह तोता बहुत ही बुद्धिमान और होशियार था। उसकी मीठी वाणी और बुद्धिमता की वजह से राजा उसे हमेशा बहुत खुश रखता था।
एक दिन तोते ने राजा से कहा कि मैं अपने माता पिता के पास जाना चाहता हूं। वह अपने माता-पिता के पास जाने के लिए राजा से विनती करने लगा। तब राजा ने कहा कि ठीक है पर तुम्हें पांच दिन में वापस आना होगा।
वह तोता जंगल की ओर उड़ गया अपने माता-पिता से मिलकर बहुत खुश हुआ। 5 दिनों के बाद जब वह वापस राजा के पास जा रहा था तो उसने एक सुंदर सा उपहार राजा के लिए ले जाने का सोचा। वह राजा के लिए अमृतफल ले जाना चाहता था।
जब अमृत फल लाने के लिए वह पर्वत पर पहुंचा तब तक रात हो चुकी थी। उसने फल को तोड़ा और रात वहीं पर गुजरने की सोची। वह सो रहा था तभी एक सांप आया और उस फल को खाना शुरू कर दिया। सांप का जहर उस पूरे फल में फैल गया था।
सुबह हुई तोता फल लेकर राजा के पास पहुंच गया और कहा राजन! मैं आपके लिए यह अमृतफल लेकर आया हूं। इस फल को खाने के बाद आप हमेशा जवान रहोगे।
तभी मंत्री ने कहा महाराज पहले फल देख भी लीजिए फल सही भी है या नहीं। राजा ने मंत्री की बात मानकर फल का एक टुकड़ा कुत्ते को खिला दिया।
कुत्ता तड़प तड़प कर मर गया। यह देख राजा बहुत क्रोधित हुआ वह अपनी तलवार से तोता का सिर धड़ से अलग कर दिया। राजा ने वह फल बाहर फेंक दिया कुछ समय बाद वहीं पर एक वृक्ष उगा।
राजा ने सख्त हिदायत दी की कोई भी इस वृक्ष का फल न खाए क्योंकि राजा को लगता था यह अमृत फल विषाक्त होते हैं जो वह तोता राजा को खिलाकर मारना चाहता था।
एक दिन एक वृद्ध आदमी उसी पेड़ के नीचे आराम कर रहा था। उसने उस वृक्ष का एक फल खाया वह जवान हो गया क्योंकि उस वृक्ष पर उगने वाले फल विषाक्त नहीं थे। जब यह बात राजा को पता चली तो उसे अपने किए का पछतावा हुआ। वह अपने करनी पर बहुत लज्जित था।
तीसरे राजकुमार के मुख से यह बात सुनकर राजा बहुत ही खुश हुआ और तीसरे राजकुमार को सही उत्तराधिकारी समझते हुए उसे ही अपने राज्य का राजा चुना।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, किसी भी अपराधी को सजा देने से पहले यह देख लेना चाहिए कि उसने गलती की भी है या नहीं। कहीं भूल बस आप किसी निर्दोष को सजा न दे दें।