धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—395

राजा ने प्राणों से प्रिय अपने राजकुमार को एक जाने-माने संत को सौंपते हुए कहा – हमें पूरा विश्वास है कि आप इसे समस्त विद्याओं में प्रवीण-पारंगत कर सच्चे उत्तराधिकारी के रूप में हमें लौटाएंगे। पांच वर्ष की अवधि तय की गई।

पांच वर्ष बीत गए। एक बार भी राजा को राजकुमार से मिलने की अनुमति नहीं थी। अंततः संत राजुकमार को लेकर राज दरबार में लौटे। राजकुमार के सिर पर गूदड़ों की गठरी लदी थी। कुली जैसी पोशाक थी। राजा यह दृश्य देखकर हैरान रह गया। राजा बोला कि हमने राजकुमार को कुली-कबाड़ी बनाने तो आपके पास नहीं भेजा था। इतने में राजा का अभिवादन न करते देख संत ने एक बेंत राजकुमार की पीठ पर जमा दिया। राजकुमार की चीख निकल गई।

राजा बोले- बस महाराज जी हो गई शिक्षा। अब आप इसे हमें सौंप दें। मंत्रिगण व उपस्थित सभी सदस्य संत की ओर देखकर बोल उठे- आपको दिखाई नहीं देता। यह राजुकमार कल राजा बनेगा और आपकी चमड़ी उधड़वा देगा। महात्मा तुरंत बोल उठे- आज शाम तक यह राजकुमार नहीं, मेरा शिष्य है। इसकी शिक्षा-दीक्षा शाम तक पूरी होगी। फिर यह जो भी करेगा, इसको शिक्षा-दीक्षा जो मैंने पांच वर्षों में दी है, इस पर निर्भर करेगा।

राजकुमार के प्रति अपने व्यवहार का स्पष्टीकरण देते हुए संत ने कहा- कष्ट-कठिनाइयों, मान-अपमान, भला-बुरा, ऊंच-नीच, कठिन- सरल, अपने-पराये के ज्ञान का अनुभव यदि राजुकमार को नहीं हुआ तो फिर वह प्रजा का दुख कैसे समझेगा? प्रजावत्सल कैसे बनेगा? न्याय कैसे कर पाएगा? यही राजकुमार अपने गुरु के हाथों गढ़कर एक सफल न्यायप्रिय ‘शिखिध्वज’ नामक राजा के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

Shine wih us aloevera gel

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—128

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—94

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 366

Jeewan Aadhar Editor Desk