धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 559

किसी गांव में एक चोर ने विद्वान संत से कहा कि आज से आप मेरे गुरु। लेकिन, मैं चोरी करना नहीं छोड़ सकता, क्योंकि यही मेरा काम है।

गुरु ने चोर से कहा कि ठीक है, अब से तू मेरा शिष्य है। मेरी एक बात ध्यान रखना सभी महिलाओं को अपनी माता और बहन समझना। चोर ने ये बात मान ली। ये लोग जिस गांव में रहते थे, उस राज्य के राजा के यहां कोई संतान नहीं थी। इस वजह से राजा अपनी रानी से गुस्सा था और रानी के अलग महल में रहने भेज दिया था। संतान न होने की वजह से रानी भी बहुत दुखी थी।

एक रात चोर रानी के महल में चोरी करने पहुंचा। रानी ने देख लिया कि चोर महल में घुस गया है। महल के चौकीदारों ने भी चोर को देख लिया और उन्होंने राजा को खबर दे दी।

रानी ने चोर से कहा कि तू यहां कैसे आया है? चोर ने जवाब दिया कि मैं घोड़े से आया हूं। रानी बोली मैं तेरे घोड़े को सोने-चांदी से लदवा दूंगी। बस मेरी एक इच्छा पूरी कर दे। चोर को अपने गुरु की बात याद थी। वह भागा नहीं, उसने कहा कि आप तो मेरी मां समान हैं। मुझे पुत्र समझकर अपनी इच्छा बताएं, मैं चोर हूं, लेकिन मेरे बस में होगा तो मैं जरूर पूरी करूंगा।

राजा ये सब बातें सुन रहा था। चोर की अच्छी बातें सुनकर बहुत खुश हुआ। उसने चोर को दरबार में बुलवाया और कहा कि मैं तुझसे बहुत प्रसन्न हूं, तू मांग ले जो चाहता है। चोर ने कहा कि राजन् आप महारानी को अब से अपने महल में ही रखें। उन्हें दुख न दें। राजा ने चोर की बात मान ली।

महारानी से राजा ने अपने किए की क्षमा मांगी। रानी से राजा से कहा कि हम इस चोर को ही अपना पुत्र बना लेते हैं। इसकी वजह से ही सब ठीक हुआ है। राजा भी ये बात मान गया और चोर को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, गुरु की बातें जीवन में उतारने से किसी का भी जीवन बदल सकता है। चोर चोरी करता था, लेकिन उसने गुरु के उपदेश को ध्यान रखा और राजा-रानी उससे प्रसन्न हो गए। एक चोर का जीवन बदल गया। गुरु का स्थान देवी-देवताओं से भी ऊपर माना गया है। गुरु की बातों का पालन करने पर किसी का भी जीवन बदल सकता है।

Shine wih us aloevera gel

https://shinewithus.in/index.php/product/anti-acne-cream/

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—297

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी के प्रवचनों से—143

अपनी दिनचर्या व जीवनकाल में किसी जीव को कष्ट न दें : स्वामी कृष्णानंद

Jeewan Aadhar Editor Desk