काशी नगर के एक धनी सेठ थे, जिनके कोई संतान नही थी। बड़े-बड़े विद्वान् ज्योतिषों से सलाह-मशवरा करने के बाद भी उन्हें कोई लाभ नही मिला। सभी उपायों से निराश होने के बाद सेठजी को किसी ने सलाह दी कि आप गोस्वामी जी के पास जाइये वे रोज़ रामायण पढ़ते है। उनके पास भगवान “राम” स्वयं कथा सुनने आते हैं। इसलिये उनसे कहना कि भगवान से पूछे कि आपके संतान कब होगी।
सेठजी गोस्वामी जी के पास जाते है और अपनी समस्या के बारे में भगवान से बात करने को कहते हैं। कथा समाप्त होने के बाद गोस्वामी जी भगवान से पूछते है कि प्रभु वो सेठजी आये थे, जो अपनी संतान के बारे में पूछ रहे थे। तब भगवान ने कहा कि गोवास्वामी जी उन्होंने पिछले जन्मों में अपनी संतान को बहुत दुःख दिए हैं, इस कारण उनके तो सात जन्मों तक संतान नही लिखी हुई हैं। दूसरे दिन गोस्वामी जी, सेठ जी को सारी बात बता देते हैं। सेठ जी मायूस होकर ईश्वर की मर्जी मानकर चले जाते है।
थोड़े दिनों बाद सेठजी के घर एक संत आते है। और वो भिक्षा मांगते हुए कहते है कि भिक्षा दो—फिर जो मांगोगे वो मिलेगा। तब सेठजी की पत्नी संत से बोलती हैं कि गुरूजी मेरे संतान नही हैं। तो संत बोले तू एक रोटी देगी तो तेरे एक संतान जरुर होगी। व्यापारी की पत्नी उसे दो रोटी दे देती है। उससे प्रसन्न होकर संत ये कहकर चला जाता है कि जाओं तुम्हारे दो संतान होगी।
एक वर्ष बाद सेठजी के दो जुड़वाँ संताने हो जाती है। कुछ समय बाद गोस्वामी जी का उधर से निकलना होता हैं। सेठ जी के दोनों बच्चे घर के बाहर खेल रहे होते है। उन्हें देखकर वे सेठ जी से पूछते है कि ये बच्चे किसके है। सेठ जी बोलता है गोस्वामी जी ये बच्चे मेरे ही है। आपने तो झूठ बोल दिया कि भगवान ने कहा है कि मेरे संतान नही होगी, पर ये देखों गोस्वामी जी! मेरे दो जुड़वा संताने हुई हैं। गोस्वामी जी ये सुन कर आश्चर्यचकित हो जाते है। फिर सेठ जी उन्हें उस संत के वचन के बारे में बताता हैं। उसकी बात सुनकर गोस्वामी जी चले जाते है।
शाम को गोस्वामीजी कुछ चितिंत मुद्रा में रामायण पढते हैं, तो भगवान उनसे पूछते है कि गोस्वामी जी आज क्या बात है? चिन्तित मुद्रा में क्यों हो? तो गोस्वामी जी कहते है कि प्रभु आपने मुझे उस सेठ जी के सामने झूठा बना दिया। आपने तो कहा कि सेठ जी के सात जन्म तक कोई संतान नही लिखी है फिर उसके दो संताने कैसे हो गई।
तब भगवान्बोले कि उसके पूर्व जन्म के बुरे कर्मों के कारण में उसे सात जन्म तक संतान नही दे सकता, क्योंकि मैं नियमों की मर्यादा में बंधा हूँ। पर अगर, मेरे किसी भक्त ने उन्हें कह दिया कि तुम्हारे संतान होगी, तो उस समय में भी कुछ नही कर सकता गोस्वामी जी। क्योंकि मैं भी मेरे भक्तों की मर्यादा से बंधा हूँ। मैं मेरे भक्तों के वचनों को काट नही सकता। मुझे मेरे भक्तों की बात रखनी पड़ती हैं। इसलिए गोस्वामी जी, अगर आप भी उसे कह देते कि जा तेरे संतान हो जायेगी तो मुझे आप जैसे भक्तों के वचनों की रक्षा के लिए भी अपनी मर्यादा को तोड़ कर वो सब कुछ देना पड़ता, जो उसके भाग्य में नही लिखा हैं।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, भले ही विधाता ने आपके भाग्य में कुछ ना लिखा हो, पर अगर किसी संत की आप पर कृपा हो जाये तो आपको वो भी मिल सकता है जो आपके किस्मत में नहीं है!! “गुरु आपके लिए वह कर सकता है जो विधाता भी नहीं कर सकता।” अगर “गुरु की कृपा” आप पर हो जाए तो आप वो भी पा सकते है जो आपके भाग्य में नही हैं।