धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 579

एक साधू किसी नदी के पनघट पर गया और पानी पीकर पत्थर पर सिर रखकर सो गया। पनघट पर पनिहारिन आती-जाती रहती हैं। तो तीन-चार पनिहारिनें पानी के लिए आईं तो एक पनिहारिन ने कहा- “आहा! साधु हो गया, फिर भी तकिए का मोह नहीं गया। पत्थर का ही सही, लेकिन रखा तो है।”

पनिहारिन की बात साधु ने सुन ली। उसने तुरंत पत्थर फेंक दिया। दूसरी बोली,”साधु हुआ, लेकिन खीज नहीं गई। अभी रोष नहीं गया, तकिया फेंक दिया।” तब साधु सोचने लगा, अब वह क्या करें?

तब तीसरी पनिहारिन बोली,”बाबा! यह तो पनघट है, यहां तो हमारी जैसी पनिहारिनें आती ही रहेंगी, बोलती ही रहेंगी, उनके कहने पर तुम बार-बार परिवर्तन करोगे तो साधना कब करोगे?”

लेकिन एक चौथी पनिहारिन ने बहुत ही सुन्दर और एक बड़ी अद्भुत बात कह दी- “साधु, क्षमा करना, लेकिन हमको लगता है, तुमने सब कुछ छोड़ा लेकिन अपना चित्त नहीं छोड़ा है, अभी तक वहीं का वहीं बने हुए है। दुनियां पाखण्डी कहे तो कहे, तुम जैसे भी हो, हरिनाम लेते रहो।”

सच तो यही है, दुनियां का तो काम ही है कहना। आप ऊपर देखकर चलोगे तो कहेंगे, “अभिमानी हो गए।” नीचे देखकर चलोगे तो कहेंगे, “बस किसी के सामने देखते ही नहीं।” आंखे बंद कर दोगे तो कहेंगे कि “ध्यान का नाटक कर रहा है।” चारों ओर देखोगे तो कहेंगे कि “निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है।” और परेशान होकर आंख फोड़ लोगे तो यही दुनियां कहेगी कि “किया हुआ भोगना ही पड़ता है।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, दुनियां की बातों को सुनकर स्वयं को मत बदलो। जैसे आपका मन ईश्वर की भक्ति में लगे, वैसे ईश्वर की साधना करते रहो। ईश्वर के नाम सु​मरिन का ना तो कोई समय है और ना कोई विधि। हर श्वांस में ईश्वर का नाम लो।

Shine wih us aloevera gel

https://shinewithus.in/index.php/product/anti-acne-cream/

Related posts

स्वामी राजदास : भक्ति में भावना की प्रधानता

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 392

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 562