भगवान श्रीकृष्ण ने दुनिया के सामने अपने जीवन काल में कई संदेश दिए जिसमें प्रमुख संदेश था धैर्यवान होने का। जब युधिष्ठिर को युवराज घोषित किया जाना था तब राजसूय यज्ञ कराया गया। इस यज्ञ में रिश्तेदारों और प्रतापी राजाओं को भी बुलाया गया था। यहीं पर शिशुपाल का सामना भगवान श्री कृष्ण से होता है।
युधिष्ठिर भागवान श्री कृष्ण का विषेश रूप से आदर सत्कार करते है। यह बात शिशुपाल को रास नहीं आती है और सभी अतिथियों के सामने खड़े होकर इसका विरोध करने लगता है और कहता है कि एक मामूली से ग्वाले को इतना सम्मान क्यों दिया जा रहा हैं। जिसे देखकर मौजूद अतिथि स्तब्ध हो जाते हैं। लेकिन भगवान श्री कृष्ण धैर्यता पूर्वक शांत मन से पूरे आयोजन को देखते हैं व शिशुपाल के द्वारा दी जाने वाली गालियों को सुन रहे होते हैं।
भगवान श्री कृष्ण 100 गालियां सुनने के बाद शिशुपाल द्वारा 101 वां अपशब्द बोले जाने के बाद अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध कर देते हैं। हालांकि पुराणों में कहा गया है कि श्री कृष्ण अपनी बुआ को दिए हुए वचन से बंधे हुए थे इसलिए शिशुपाल का वध करने में इतने धैर्यवान बनें रहे। धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, श्रीकृष्ण की यह लीला हमें धैर्यवान बनें रहने के साथ—साथ वचन पर खरे उतरने का भी संदेश देती है।