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सत्यार्थप्रकाश के अंश—37

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गाय के गोबर से वैसा दुर्गन्ध नहीं होता जैसा कि मनुुष्य के मल से। यह चिकना होने से शीघ्र नहीं उखड़ता न कपड़ा बिगड़ता न मलीन होता है। जैसा मिट्टी से मैल चढ़ता है वैसा सूखे गोबर से नहीं होता। मिटटी और गोबर से जिस स्थान का लेपन करते हैं वह देखने में अतिसुन्दर होता है। और जहां रसोई से जिस स्थान का लेपन करते है वह देखने में अतिसुन्दर होता है। और जहां रसोई बनती है वहां भोजनादि करने से घी,मिष्ट,और उच्छिष्ट भी गिरता है। उस से मक्खी,कीड़ी,आदि बहुत से जीव मलिन स्थान से आते हैं। जो उस में झाडू लेपन से शुद्धि प्रतिदिन न की जावे तो जानो पाखाने के समान वह स्थान हो जाता है। इसलिये प्रतिदिन गोबर मिट्टी झाडू से सर्वथा शुद्ध रखना। और जो पक्का मकान हो तो जल से धोकर शुत्र रखना चाहिये। इस से पूर्वोक्त दोषों की कहीं लकड़ी,कहीं फूटी हांडी,जूठी रकेबी,कहीं हाड़ गोड़ पड़े रहते हैं और मक्खियों का तो क्या कहना। वह स्थान ऐसा बुरा लगता है कि जो कोई श्रेष्ठ मनुष्य जाकर बैठे तो उसे वान्त होने का भी सम्भव है और उस दुर्गन्ध स्थान के समान ही वह स्थान दीखता है। भला जो कोई इन से पूछे कि कोई यदि गोबर से चौका लगने में तो तुम दोष गिनते हो परन्तु चूल्हे में कण्ड जलाने,उस की आग से तमाखू पीने,घर की भीति पर लेपन करने आदि से मियां जी का भी चौका भ्रष्ट हो जाता होगा इस में क्या सन्देह।
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