एक बार एक महान संत गाँव-गाँव घूमकर लोगों को ज्ञान दे रहे थे। एक शाम वे एक छोटे से गाँव में पहुँचे। रात घिर रही थी, इसलिए संत ने वहीं रुकने का निश्चय किया।
गाँव में एक गरीब विधवा रहती थी। उसका घर बहुत छोटा था, लेकिन उसका दिल बहुत बड़ा था। उसने संत से कहा— “महाराज, मेरा घर छोटा है… मैं बहुत गरीब हूँ… पर यदि आप चाहें तो मेरे घर पर विश्राम कर सकते हैं।”
संत मुस्कुराए और बोले, “घर का छोटा या बड़ा होना मायने नहीं रखता, मन बड़ा होना चाहिए।”
वह संत को घर ले आई। घर में बस एक छोटी-सी दीपक था, जिसकी लौ बहुत धीमी थी।
वह बोली, “महाराज, मेरा दीपक भी बहुत छोटा है… इससे आपके लिए पर्याप्त प्रकाश नहीं होगा।”
संत ने दीपक उठाया, उसकी लौ को निहारा और बोले— “बेटी, संसार में कोई भी वस्तु छोटी नहीं, बस हमारा नजरिया छोटा होता है। यह छोटी लौ भी अंधकार को काट सकती है।
जिसमें प्रकाश है, वह कभी छोटा नहीं होता।”
रात में संत ध्यान करने लगे। दीपक की छोटी-सी लौ पूरे कमरे में फैल गई।
विधवा आश्चर्य से बोली, “महाराज, यह छोटा दीपक पूरे कमरे को उजाला कैसे दे रहा है?”
संत ने उत्तर दिया— “जिस क्षण किसी को अपने ‘छोटे होने’ का भ्रम मिट जाता है, उसी क्षण उसकी शक्ति जग जाती है।
दीपक छोटा है, पर उसका काम महान है— ज्योति देना।
इंसान छोटा नहीं होता, बस अपने भीतर की ज्योति को पहचानता नहीं।”
अगली सुबह संत ने जाते समय उस विधवा से कहा— “स्वयं को छोटा समझोगी, तो जीवन का अंधकार बढ़ेगा। अपनी क्षमता पहचानोगी, तो वही क्षमता प्रकाश बन जाएगी।”
विधवा ने उसी दिन निर्णय लिया कि वह अब कभी अपने को छोटा नहीं मानेगी।
धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास बढ़ा, काम बढ़े, और वर्षों बाद वही छोटा-सा घर पूरे गाँव में मदद का केंद्र बन गया।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, “छोटा होना कमजोरी नहीं है। कमजोरी तब बनती है जब तुम खुद को छोटा समझने लगती हो। हम अपनी सोच से ही कमजोर या मजबूत बनते हैं।”








