धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—612

एक संत अनेक विद्याओं के ज्ञाता थे। उनके कई शिष्य थे। जब वह वृद्ध हो चले तो उन्होंने सोचा कि अपनी महत्वपूर्ण विद्याएं किसी एक शिष्य को सिखा दी जाए। उन्होंने उचित पात्र का चयन करने की ठानी। इसके लिए वह अपने सभी शिष्यों को लेकर एक निर्जन स्थान की ओर चल दिए। रात्रि में भी वे चलते रहे। उन्हें चलते-चलते दो दिन और दो रातें हो गई थीं। सभी शिष्यों का नींद और भूख-प्यास से बुरा हाल था।

कुछ शिष्यों ने विद्या सीखने का विचार त्याग दिया और वहां से लौट गए। कुछ शिष्य मार्ग में बेहोश हो गए। संत फिर भी नहीं रुके। जितने शिष्य उनके पास बचे उन्हें ही लेकर वह चलते रहे। चार दिन तक भूख-प्यास व नींद से व्याकुल होकर कुछ शिष्य अचेत से हो गए। अब उनके साथ केवल दो शिष्य चल रहे थे। उन्हें वह एक कुटिया में लेकर गए और बोले, ‘आज मैं तुम्हें गेहूं के दानों से मोती बनाना सिखाऊंगा। उन्होंने अपने झोले से कुछ गेहूं के दाने निकाले और दोनों शिष्यों को देते हुए मंत्र पढ़ने को कहा। उनमें से एक शिष्य भूख-प्यास से अचेत हो गया और उसका मंत्र बीच में ही छूट गया। अब उनके पास एक शिष्य बचा जिसमें अब भी विद्या सीखने की लगन और इच्छा थी। उसने सीखने की प्रबल इच्छा के कारण भूख-प्यास, नींद, थकान सभी पर विजय पा ली थी।

संत के अनुसार, वह उनका पालन करता रहा और कुछ ही देर में गेहूं से मोती बन गए। संत ने उसे गले से लगा लिया। संत ने उस शिष्य से कहा, ‘ जागरूकता और लगन से किसी भी दुर्गम मंजिल को हासिल किया जा सकता है। अगर कोई सच्ची लगन से कोई काम करे तो वह हर असंभव को संभव कर सकता है। तुम्हारे अंदर ये सारे गुण हैं। इसलिए तुम इन विद्याओं को सीखने के सही अधिकारी हो।’ इसके बाद संत ने उसे सभी कठिन विद्याओं में पारंगत कर दिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, संत और गुरु के साथ होने पर भी लगन, श्रद्धा और विश्वास का मेल होने पर ही शिष्य उनके गुण व ज्ञान को धारण कर सकता है। यदि किसी शिष्य में लगन, श्रद्धा और विश्वास नहीं है तो वह संत और गुरु के साथ होने पर भी सदा ज्ञान और गुणों से वंचित ही रहता है।

Shine wih us aloevera gel

https://shinewithus.in/index.php/product/anti-acne-cream/

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—340

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—407

सत्यार्थप्रकाश के अंश—10