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सत्यार्थप्रकाश के अंश—10

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किसी ने मिश्री के गुण सुने हों और खाई न हो तो उसका मन उसी में लगा रहता है। जैसे किसी परोक्ष वस्तु की प्रंशसा सुनकर मिलने की उत्कट इच्छा होती है, वैसे ही दूरस्थ अर्थात् जो अपने गोत्र वा माता के कुल में निकट समबन्ध की न हो उसी कन्या से वर का विवाह होना चाहिये।
निकट और दूर विवाह करने में गुण ये हैं-
1.एक -जो बालक बाल्यावस्था से निकट रहते हैं, परस्पर क्रीडा, लड़ाई और प्रेम करते, एक दूसरे के गुण, दोष, स्वभाव, बाल्यावस्था के विपरीत आचरण जानते और नग्ङे भी एक दूसरे को देखते हैं, उन का परस्पर विवाह होने से प्रेम कभी नहीं हो सकता।
2.दूसरा-जैसे पानी में पानी मिलने से विलक्षण गुण नहीं होता, वैसे एक गोत्र पित् पा मातृकुल में विवाह होने में धातुओं के अदल-बदल नहीं होने से उन्नति नहीं होती।
3. तीसरा- जैसे दूध में मिश्री वा शुण्ठय्यादि औषधियों के योग होने से उत्तमता होती है वैसे ही भिन्न मातृ पितृ कुल से पृथक् वर्तमान स्त्री पुरूषों का विवाह होना उत्तम है।
4.चौथ-जैसे एक देश में रोगी हो वह दूसरे देश में वायू और खान पान के बदलने से रोग रहित होता है वैसे ही दूर देशस्थों के विवाह होने में उत्तमता है।
5. पांचवे- निकट सम्बन्ध करने में एक दूसरे के निकट होने में सुख दु:ख का भान और विरोध होना भी सम्भव है, दूर देशस्थों में नहीं और दूरस्थों के विवाह में दूर-दूर प्रेम की डोरी लम्बी बढ़ जाती है किटस्थ विवाह में नहीं।
6.छठे- दूर-दूर देश के वर्तमान और पदार्थो की प्राप्ति भी दूर सम्बन्ध होने में सजगता से हो सकती है, निकट विवाह होने में नहीं।
कन्या का नाम दुहिता इस कारण से है कि इसका विवाह दूर देश में होने से हितकारी होता है निकट रहने में नहीं।
7.सातवें-कन्या के पितृकुल में दारिद्रय्य होने का भी सम्भव है क्योंकि जब-जब कन्या पितृकुल में आवेगी तब-तब इस को कुछ न कुछ देना ही होगा।
8.आठवां-कोई निकट होने से एक दूसरे को अपने-अपने पितृकुल के सहाय का घमण्ड और जब कुछ भी दोनों में वैमनस्य होगा तब स्त्री झट ही पिता कुल में चली जायेगी। एक दूसरे की निन्दा अधिक होगी और विरोध भी क्योंकि प्राय: स्त्रियों का स्वभाव तीक्ष्ण और मृदु होता है, इत्यादि कारणों से पिता के एकगोत्र माता की छ: पीढ़ी और समीप देश में विवाह करना अच्छा नहीं।
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