रामायण में, हनुमान की वजह से श्रीराम और सुग्रीव की भेंट होती है। दोनों ने एक-दूसरे की सहायता करने का वचन दिया। श्रीराम ने बाली को मारकर सुग्रीव को उसका खोया राज्य दिलवाया। सुग्रीव ने सीता की खोज और लंका युद्ध में श्रीराम की पूरी सहायता की।
हालांकि, राज्य प्राप्त करने के बाद सुग्रीव अपने वचन को भूल गए,और राज के सुख में खो गए। तब लक्ष्मण ने उन्हें चेताया और उन्हें अपनी जिम्मेदारी का अहसास हुआ। इसके बाद सुग्रीव ने अंतिम सांस तक श्रीराम का साथ दिया।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, मित्रता में अपना कर्तव्य निभाना अत्यंत आवश्यक है। अगर आपने किसी मित्र से सहयोग का वादा किया है, तो उसे समय पर निभाएं। सफलता मिलने के बाद मित्रों को भूल जाना सबसे बड़ी चूक है। किसी मित्र ने आपके लिए कुछ किया है तो उस ऋण को स्वीकारें और समय आने पर अपना कर्तव्य निभाएं। मित्रता सिर्फ सुख के समय नहीं, संकट में निभाई जाती है। अपने अहं को त्यागकर पुराने मित्रों की कद्र करें।