धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 651

महाभारत का प्रसंग है। एक दिन खांडव वन में आग लग गई थी। उस समय वन की आग में मयासुर नाम का एक राक्षस जलने वाला था, लेकिन अर्जुन ने उसके प्राण बचा लिए थे। मयासुर ने अर्जुन से कहा, ‘आपने वन की आग से मुझे बचाया है, इस उपकार के बदले बताइए, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?

अर्जुन ने कहा, ‘आपने ये बात मुझसे कही है, बस यही मेरे लिए उस उपकार का बदला हो गया है। अब आप जा सकते हैं और ऐसा ही प्रेम हमेशा मुझसे बनाए रखिए।’

मयासुर बोला, ‘मैं दानवों का विश्वकर्मा हूं। शिल्प विद्या का जानकार हूं। मैं अद्भुत निर्माण करता हूं। मैं आपकी कुछ न कुछ सेवा तो करना चाहता हूं।’

अर्जुन ने साफ मना करते हुए कहा, ‘मुझे आपकी कोई सेवा नहीं चाहिए। अगर आप सेवा करना ही चाहते हैं तो श्रीकृष्ण से पूछ लीजिए, इनका कोई काम हो तो वह कर दीजिए।’

अर्जुन ने सोचा था कि श्रीकृष्ण भी मना ही करेंगे, लेकिन श्रीकृष्ण दूरदृष्टि रखकर ही कोई भी निर्णय लेते थे। श्रीकृष्ण ने मयासुर से कहा, ‘तुम पांडवों के बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर के लिए एक सभा भवन बना दो। सभा भवन ऐसा बनाना कि जो भी उसे देखे वह हैरान हो जाए।’

मयासुर ने युधिष्ठिर से बात करके एक अद्भुत सभा भवन बना दिया। उस समय अर्जुन को समझ आया कि श्रीकृष्ण कितना आगे की सोचते हैं। उस सभा भवन से पांडवों की शक्ति का पता लग गया और पांडवों को रहने के लिए सुंदर महल भी मिल गया था।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, सदा हर कार्य में दूरदृष्टि रखें – श्रीकृष्ण ने मयासुर से एक ऐसा कार्य करवाया जो तत्काल में एक भवन निर्माण था, लेकिन भविष्य में वही पांडवों की प्रतिष्ठा और सत्ता की नींव बना। निर्णय लेते समय केवल आज की स्थिति मत देखिए, भविष्य की संभावनाओं पर भी विचार करें।

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Jeewan Aadhar Editor Desk