धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 720

एक गाँव में नीलकमल नाम का एक युवक रहता था। वह बहुत मेहनती था, लेकिन जब भी किसी नए काम की शुरुआत करता, उसके आसपास के लोग उसे डराने लगते —
कोई कहता, “अरे, तू यह काम नहीं कर पाएगा!” कोई हँसता, “तेरे पास पैसे भी नहीं हैं, और सोचता है कि बड़ा व्यापारी बनेगा?”

धीरे-धीरे नीलकमल के मन में निराशा और भय घर करने लगे। उसने काम करना लगभग छोड़ दिया और हर बात में उसे असफलता ही दिखने लगी।

एक दिन वह थका-हारा जंगल की ओर चला गया। वहाँ उसे एक बूढ़ा साधु मिला। साधु ने पूछा, “बेटा, इतना उदास क्यों?”

नीलकमल बोला, “गुरुजी, मैं जो भी करता हूँ, लोग मुझे हतोत्साहित करते हैं। अब तो आत्मविश्वास भी खो गया है।”

साधु मुस्कराए और बोले, “आओ, मैं तुम्हें कुछ दिखाता हूँ।” वह उसे एक सुंदर झील के किनारे ले गए। झील में बहुत से सूखे और गंदे पत्ते तैर रहे थे, लेकिन बीच में एक नीले कमल का फूल खिला था—निर्मल, सुंदर, और सुगंधित।

साधु बोले, “देखो, यह कमल उसी गंदे पानी में उगा है, जिसमें अन्य चीज़ें सड़ जाती हैं। फर्क इतना है कि इसने अपने भीतर की पवित्रता और सकारात्मकता को बनाए रखा।”

फिर बोले, “यदि तुम निराशा, भय और नकारात्मक लोगों के प्रभाव में रहोगे, तो वही तुम्हें भी सड़ा देंगे। लेकिन यदि तुम उनसे दूर रहकर अपने भीतर के आत्मविश्वास और अच्छे विचारों को पोषित करोगे, तो तुम भी इस कमल की तरह खिल उठोगे।”

उन शब्दों ने नीलकमल का जीवन बदल दिया। उसने तय किया कि अब वह किसी की नकारात्मक बातों पर ध्यान नहीं देगा। उसने छोटे-छोटे कदमों से काम शुरू किया, और कुछ वर्षों में वही लोग जो उसे “निराशाजनक” कहते थे, उसके सफलता की मिसाल देने लगे।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जो विचार या व्यक्ति तुम्हें भय, थकान या निराशा देते हैं, उनसे दूर रहो। अपने आत्मविश्वास को जल की तरह साफ और मन को कमल की तरह निर्मल रखो। सकारात्मकता ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है।

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