धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 653

गाँव के बाहर पीपल के पेड़ के नीचे एक संत रहते थे। उनकी वाणी मधुर थी और लोग उनके पास बैठकर ज्ञान प्राप्त करते। एक दिन गाँव का एक युवक संत के पास आया। चेहरे पर चिंता की रेखाएँ थीं और मन बेचैन।

युवक ने कहा, “गुरुदेव, मेरा मन बहुत अशांत है। मैं हर दिन मेहनत करता हूँ, धन भी कमाना चाहता हूँ, सम्मान भी चाहिए और सफलता भी। पर जितना कोशिश करता हूँ, उतना ही तनाव बढ़ जाता है। मन कभी शांत ही नहीं होता। कृपया मुझे कोई उपाय बताइए।”

संत मुस्कुराए, उन्होंने उसकी ओर प्रेम भरी दृष्टि डाली और धीरे से कहा –”बेटा, चलो मेरे साथ।”

वे दोनों पास के तालाब की ओर गए। वहाँ का दृश्य बड़ा सुंदर था। कमल खिले हुए थे, पक्षियों की मधुर चहचहाहट गूँज रही थी। लेकिन युवक का मन इन सबमें डूब नहीं पाया, क्योंकि उसका हृदय चिंता से भरा हुआ था।

संत ने तालाब की ओर इशारा करते हुए कहा – “बेटा, इस पानी को अपने हाथों से स्थिर कर दो।”

युवक ने आश्चर्य से कहा – “गुरुदेव, पानी को हाथों से स्थिर कैसे किया जा सकता है?”

संत चुप रहे। युवक ने हाथ डालकर कोशिश की। वह धीरे-धीरे पानी को सहलाने लगा, पर हर बार तालाब की सतह पर लहरें उठ जाती। कुछ देर बाद उसने ज़ोर से हाथ घुमाया, पर तब तो लहरें और भी बड़ी हो गईं।

थककर युवक ने संत की ओर देखा और बोला –”गुरुदेव, यह असंभव है। हाथ डालते ही पानी हिल जाता है।”

संत मुस्कुराए और बोले – “यही तो शिक्षा है, बेटा। जब हम मन को ज़बरदस्ती शांत करने की कोशिश करते हैं, तब वह और भी अशांत हो जाता है। जैसे पानी को हाथों से दबाकर स्थिर नहीं किया जा सकता, वैसे ही मन को दबाव से शांत नहीं किया जा सकता।”

फिर संत कुछ देर मौन रहे। उसके बाद बोले – “यदि तुम धैर्य से बैठो, कुछ देर प्रतीक्षा करो, तो देखोगे कि पानी स्वयं शांत हो जाएगा। यही स्थिति मन की है। जब तुम चिंता छोड़कर धैर्य और संयम से बैठोगे, तो मन अपने आप स्थिर और शांत हो जाएगा।”

युवक ने तालाब की ओर देखा। सचमुच, थोड़ी देर बाद बिना छेड़े पानी फिर से शांत हो गया था। उसके मन में बिजली-सी चमक उठी। वह समझ गया कि शांति पाने का मार्ग बाहर नहीं, भीतर है।

“गुरुदेव, अब मुझे समझ आ गया कि जीवन की भागदौड़ में शांति पाने का एक ही उपाय है – धैर्य, संयम और आत्मचिंतन।”

संत ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया। “याद रखना बेटा, सुख-संपत्ति से शांति नहीं आती, बल्कि शांति से ही सुख-संपत्ति का सही आनंद मिलता है।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, मन की शांति ज़बरदस्ती नहीं मिलती। धैर्य, संयम और भीतर की साधना से ही जीवन शांत और आनंदमय बनता है।

Shine wih us aloevera gel

https://shinewithus.in/index.php/product/anti-acne-cream/

Related posts

स्वामी राजदास : कर्म का फल

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—231

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 518