धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 656

बहुत समय पहले की बात है। पहाड़ियों के बीच बसे एक गाँव में एक संत रहते थे। उनका आश्रम घने वृक्षों से घिरा हुआ था और सुबह-शाम वहाँ पक्षियों का मधुर कलरव गूंजता रहता था। दूर-दूर से लोग उनकी शरण में आते और शांति पाते।

संत का एक शिष्य था – आरव। वह परिश्रमी और ईमानदार था, परंतु उसका हृदय बहुत संवेदनशील था। कोई उसे कठोर शब्द कह देता, तो वह कई दिनों तक दुखी रहता। किसी की निंदा सुन लेता, तो भीतर ही भीतर जलता रहता।

एक दिन वह संत के पास आया और बोला— “गुरुदेव, मुझे लगता है मेरा मन छोटा है। छोटी-सी बात भी मुझे गहरा आहत कर देती है। मैं दुखी और चिड़चिड़ा हो जाता हूँ। कृपया मेरा मार्गदर्शन करें।”

संत मुस्कुराए, उन्होंने शिष्य के कंधे पर हाथ रखा और कहा—”बेटा, आज मैं तुम्हें जीवन का एक रहस्य बताऊँगा। चलो, मेरे साथ जंगल की ओर।”

अगली सुबह संत आरव को साथ लेकर जंगल की ओर निकल पड़े। रास्ते में दोनों ने हरे-भरे पेड़, कल-कल करती नदी और पक्षियों का कलरव सुना। चलते-चलते वे एक छोटे पोखर के पास पहुँचे।

संत ने आरव को आदेश दिया— “इस पोखर में मुट्ठी भर मिट्टी डालो।”

आरव ने मिट्टी डाली। पानी तुरंत गंदला हो गया और पोखर के किनारे बैठे बगुले उड़कर दूर चले गए।

संत ने कहा, “अब इसमें से एक लोटा पानी भरकर पियो।”

आरव ने पानी पिया तो उसका चेहरा बिगड़ गया। “गुरुदेव, यह पानी तो गंदा और कड़वा है। पीने योग्य नहीं।”

संत ने कुछ नहीं कहा। वे उसे आगे ले गए।

कुछ दूर चलने के बाद वे एक विशाल झील के किनारे पहुँचे। जल शांत और निर्मल था, मानो आकाश उसमें उतर आया हो।

संत ने फिर कहा— “अब इसी मिट्टी की एक और मुट्ठी लेकर झील में डालो।”

आरव ने वैसा ही किया। मिट्टी का असर झील में बिल्कुल नहीं दिखा। जल वैसे का वैसा निर्मल और शीतल रहा।

संत ने मुस्कुराते हुए कहा— “अब इस झील का जल पियो।”

आरव ने झील का पानी पिया, उसका चेहरा खिल उठा और कहा “गुरुदेव, यह तो मीठा और शीतल है, मिट्टी का कोई असर ही नहीं।”

संत ने गंभीर स्वर में कहा—”बेटा, जीवन में दुख, अपमान और कठिनाइयाँ मिट्टी की तरह हैं। वे सबको मिलती हैं, इन्हें टालना संभव नहीं। फर्क इतना है कि हृदय यदि छोटे पोखर जैसा होगा तो थोड़ी-सी कटुता भी उसे गंदला कर देगी। परंतु यदि हृदय विशाल झील जैसा होगा, तो हजार कटु अनुभव भी उसमें समा जाएँगे, पर उसका सौंदर्य और शांति नष्ट नहीं होगी।

इसलिए हमेशा हृदय को विशाल बनाओ। क्षमा, करुणा और धैर्य से भर दो। तब कोई भी तुम्हें आहत नहीं कर सकेगा।”

आरव की आँखों से आँसू निकल पड़े। उसने संत के चरणों में सिर रख दिया और बोला—”गुरुदेव, आज मुझे जीवन का सबसे बड़ा रहस्य मिला। अब मैं अपने हृदय को विशाल झील जैसा बनाने का प्रयास करूँगा।”

उस दिन के बाद आरव गाँव में सबसे सहनशील, शांत और करुणामय व्यक्ति के रूप में जाना जाने लगा।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, दुनिया की कठोरता और दुख मिट्टी की तरह हैं। पर हमें यह तय करना है कि हम पोखर जैसा छोटा दिल रखते हैं या झील जैसा विशाल हृदय।

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Jeewan Aadhar Editor Desk

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