धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 660

एक बार एक गाँव में एक संत प्रवास कर रहे थे। लोग दूर-दूर से आकर उनसे ज्ञान की बातें सुनते थे। एक दिन गाँव का एक नौजवान संत के पास आया और बोला— “महाराज! मैंने सुना है कि वाणी का बड़ा महत्व है, लेकिन मुझे समझ नहीं आता कि सिर्फ बोलने से इतना असर कैसे पड़ सकता है?”

संत मुस्कराए और बोले— “पुत्र! वाणी ही इंसान के मन का दर्पण है। वही हमें ऊँचाई पर पहुँचा सकती है और वही हमें गहरे गर्त में गिरा सकती है। आओ, मैं तुम्हें एक उदाहरण से समझाता हूँ।”

संत ने उस युवक को पास बैठे दूसरे ग्रामीण को बुलाने को कहा। जब वह आया तो संत ने युवक से कहा— “अब इस व्यक्ति से मीठे शब्दों में बात करो।”

युवक ने विनम्रता और प्रेम से उस ग्रामीण की प्रशंसा की, उसे सम्मानित किया। ग्रामीण का चेहरा खिल उठा और उसने बड़े आदर से युवक को प्रणाम किया।

फिर संत बोले— “अब तुम उसी व्यक्ति से कठोर और कटु वचन कहो।”

युवक ने झिझकते हुए ऐसा किया। बस, इतना कहते ही ग्रामीण का चेहरा बदल गया, आँखों में क्रोध आ गया और उसने रूखा व्यवहार किया।

संत ने शांति से कहा— “देखा पुत्र! वही तुम थे, वही व्यक्ति था, सिर्फ तुम्हारी वाणी बदली और उसके हृदय की स्थिति भी बदल गई। वाणी के शब्द फूल भी बन सकते हैं और काँटे भी। एक मीठा शब्द किसी का दिन बना देता है, और एक कटु वचन रिश्तों को तोड़ देता है।”

फिर संत ने एक आखिरी बात समझाई— “जैसे घाव तलवार से होता है तो समय के साथ भर जाता है, पर वाणी से दिए गए घाव जीवनभर चुभते रहते हैं। इसलिए बोलने से पहले सोचो, क्योंकि वाणी वही बीज है जिससे रिश्तों का फल मिलता है।”

युवक ने हाथ जोड़कर कहा— “महाराज! अब समझ गया कि वाणी ही सबसे बड़ा धन है। मैं आज से प्रयास करूँगा कि मेरे शब्द हमेशा किसी के लिए सुखदायी हों।”

संत मुस्कराए और बोले— “यही वाणी का असली महत्व है।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, आपकी वाणी ही आपकी पहचान है। आपकी वाणी समाज में आपको सम्मान भी दिलवा सकती है और अपमान भी। अब ये निर्भर आप पर है कि आप मान—सम्मान चाहते हैं या अपमान।

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