बहुत समय पहले एक बड़े नगर में एक धनी सेठ रहता था। उसका जीवन वैभव से भरा था—मकान, नौकर-चाकर, गाड़ियाँ सब कुछ। परंतु उसमें एक बड़ी कमजोरी थी—वह हर काम को टालता रहता था।
किसी ने व्यापार का अच्छा प्रस्ताव दिया तो बोला—“अभी देखेंगे।”
मंदिर में दान करने का अवसर आया तो बोला—“कल करेंगे।”
परिवार ने यात्राएँ करने का आग्रह किया तो कहता—“फुर्सत में चलेंगे।”
उसकी यह आदत धीरे-धीरे नुकसान करने लगी। अच्छे सौदे निकल गए, रिश्तेदार दूर हो गए और जीवन नीरस होने लगा।
एक दिन नगर में एक संत पधारे। लोगों ने बताया—“महाराज, इस नगर का सबसे बड़ा सेठ बड़ा टालमटोल करने वाला है।” संत ने ठान लिया कि वे सेठ को समझाएँगे।
वे सीधे सेठ के घर पहुँचे। सेठ ने आदरपूर्वक संत का स्वागत किया। भोजन के बाद संत ने मुस्कुराते हुए कहा— “सेठजी, आपसे एक प्रश्न है। यदि किसान वर्षा के समय बीज न बोए और बाद में बोए तो क्या फसल अच्छी होगी?”
सेठ: “नहीं महाराज, समय निकल जाए तो मेहनत व्यर्थ हो जाती है।”
संत: “और यदि कोई बीमार हो और दवा समय पर न ले तो?”
सेठ: “तो बीमारी बढ़ जाएगी और दवा का असर भी कम होगा।”
संत ने गंभीर स्वर में कहा— “जैसे फसल और दवा का समय होता है, वैसे ही जीवन के प्रत्येक कार्य का भी सही समय होता है। अवसर बार-बार नहीं आते। जो व्यक्ति आज का काम कल पर टालता है, वह जीवनभर पछताता है। धन, पुण्य और शिक्षा—तीनों का मूल्य तभी है जब उन्हें सही समय पर ग्रहण किया जाए।”
संत के शब्द सेठ के हृदय को छू गए। उसे अपने गँवाए हुए अवसर याद आने लगे। उसने निश्चय किया—“आज से मैं किसी भी शुभ काम को टालूँगा नहीं। समय ही सबसे बड़ा धन है।”
उस दिन से सेठ का जीवन बदल गया। उसने हर कार्य समय पर करना शुरू किया। व्यापार फिर से बढ़ा, परिवार में खुशहाली लौटी और नगर में उसकी प्रतिष्ठा और भी बढ़ गई।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, सही समय पर किया गया कार्य ही सफलता देता है। अवसर बार-बार नहीं आते, उन्हें पहचानकर तुरंत कार्य करना चाहिए। समय सबसे बड़ा धन है—जो इसे खोता है, सब कुछ खो देता है।