धर्म

ओशो : का सौवे दिन रैन-219

एक सज्जन के साथ एक दफे मुझे यात्रा करने की झंझट आ गई। महात्मा है। महातमाओं से मेरी साधारणत: बनती नहीं। सयोंगवशात साथ हो लिया। एक ही सम्मेलन में हम भाग लेने जाते थे। एक ही डिब्बे में पड़ गए,एक -दूसरे को जानते थे, तो साथ हो गया। संयोजकों ने भी सोचा कि हम साथ ही डिब्बे में आए है तो शायद सगं-साथ हमारा है, कुछ दोस्ती है, तो एक ही जगह ठहरा दिया। ऐसे भाग्य से ही यह मुसीबत हुई। मगर मैं बड़ा परेशान हुआ उनका सब ढंग देख कर। चौबीस घंटे उनका विचार भोजन पर खड़ा और उसमें ऐसी बारीकियां-भैंस का दूध वे लेंगे नहीं।
मैंने पूछा कि भैंस में परमात्मा नहीं है? नहीं, वे तो गऊ का ही दुध लेंगे, गाय का ही दूध चाहिए। चलो ठीक है, संयोजकोंं ने व्यवस्था की गाय के दूध की। वे पूछने लगे: गाय सफेद है कि काली? तब मैंने कहा: अब जरा जरूरत से ज्यादा बात हुई जा रही है। सफेद गाय का ही दूध लेंगे, ऐसा व्रत लिया हुआ है, जैसे कि काली गाय का दूध काला होता है। मूढ़ताओं की भी… बड़ी ऊचाईयां है मूढ़ता की भी। बड़े परिष्कार है मूढ़ता के।… घी कितनी देर का तैयार किया हुआ है? चार घड़ी से ज्यादा देर का नहीं होना चाहिए। भोजन स्त्री का बना नहीं होना चाहिए।
मैंने उनसे पूछा:जब तुम पैदा हुए, तो तुमने पिता का दूध पिया था? वे बहुत नाराज हो गए कि आप किस तरह की बात करते हैं। मैंने कहा: बात इसलिए करता हूं कि परमात्मा ने भी तय किया है कि स्त्री का ही भोजन शुरू से चल रहा है, बचपन से ही, नहीं तो पिता का स्तन दिए होते। कम से कम महात्माओं के लिए तो विशेष इन्तजाम किया होता। तुम मां के ही पेट में बड़े हुए , मां के ही मांस- मज्जा से तुम्हारी देह बनी, मां के ही स्तन से दूध पीकर तुम बड़े हुए, आज यह कैसा अकृतज्ञ व्यवहार-स्त्री का छुआ हुआ भोजन नहीं खाएंगे। नौकरी करना चाहते है, तो यहां क्लिक करे।
नहीं, वे कहने लगे: आप समझते नहीं, इसमें बड़ा विज्ञान है। स्त्री का भोजन लेने से स्त्री-तत्व उसमें सम्मिलित हो जाता है, तो वासना जगती है। मैंने कहा, हद हो गई, गऊ का दूध पिया- सफेद गऊ का, वह कोई बैल है? उसमें वासना नहीं जग गई। और उससे तो और खतरनाक वासना जगगी- सांड हो जाओगे। बिलकुल खराब हो जायेगी जिन्दगी।
तो वे इतने नाराज हो गए कि उन्होंने संयोजकों से कहा कि मुझे इस कमरे से अलग करो। मेरी सारी साधना में बाधा पड़ रही है। हर चीज के लिए मुझे उत्तर देना पड़ रहा है और व्यर्थ का विवाद खड़ा हो रहा है।
चौबीस घंटे उनकी चर्चा देखा तो उसमें यही हिसाब-किताब था- यह खाना यह नहीं खाना, इसका छुआ उसका छुआ। पानी भी जो भरकर लाए कुएं से, वह गीले वस्त्र पहनकर पानी लाए। मैंने पूछा इसका क्या राज है? उन्होंने कहा: असली में नियम तो ये हैं कि नग्र उसको भर कर लाना चाहिए, लेकिन नग्र भद्दा मालूम पड़ता है, तो गीले कपड़े। यह उसमें जरा समझौता है। झुद्धि के लिहाज से ऐसा करना पड़ता है।
और मैने कहा: तुम कपड़े पहने पानी पी रहे हो। गीले करो कपड़े। या नंगे हो कर पीओ। दूसरा आदमी नंगा होकर लाए या गीले कपड़े पहनकर लाए, तुम क्या कर रहे हो? जीवन आधार न्यूज पोर्टल को आवश्यकता है पत्रकारों की…यहां क्लिक करे और पूरी जानकारी ले..

तुम चकित होओगे अगर तुम महात्माओ का सत्संग करो। तो तुम बड़े हैरान होओगे कि क्या-क्या उन्होंने कलाएं खोज रखी हैं।
तुम्हें कुछ ऐसे ही दुष्टों का संग मिल गया होगा। इनको मैं रूग्ण मानता हूं। मानसिक रूप सं विक्षिप्त मानता हूं।
तुम्हें उपलब्धि के बाद और कुछ न सूझा, भोजन की याद आयी। भोजन परमात्मा पर छोड़ा, जो उपलब्धि तक करवा देगा, वह भोजन की भी फ्रिक लेगा। करवाए तो कर लेना और न करवाए तो न करना। तुम बीच में अपना अड़ंगा मत लगाना, बस इतना ही खयाल रखना।
हमारे चित्त में द्वैत की भावना, द्वैत का भाव इतना गहरा ैठ गया है- द्वंद्व का, संघर्ष का। हमें एक बात इतनी जड़ता से पकड़ गई हैं कि हमें कुछ करना है संघर्ष। जब कि सच्चाई यह है कि हमें जो करना है वह संघर्ष नहीं है, समपर्ण है। परमात्मा पर छोड़ो वह जहां ले जाए जाओ। तुम नदी की धार में बहो, तैरो मत। और धार के विपरीत तो तैरो ही मत। यह धार के विपरीत तैरना है। इसमें नाहक थकोगे, टूटोग। और अब थकोगे, टूटोगे, परेशान होओगे, तो नाराज होओगे दनी पर, कि यह नदी हमारी दुश्मनी कर रही है। और नदी तुम्हारी दुश्मनी नहीं कर रही, नदी अपनी धार से बही जा रही है। तुम नाहक नदी की दुश्मनी करके अपने को तोड़े ले रहे हो। स्कूली प्रतियोगिता.. प्ले ग्रुप से दसवीं तक विद्यार्थी और स्कूल दोनों जीतेंगे सैंकड़ों उपहार.. अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे
और ध्यान रखना, अंश अंशी से लडक़र कहीं भी नहीं पहुंच सकता। हम उसके बड़े छोटे-छोटे हिस्से है। जैसे मेरी उंगली अगर मेरे से लडऩे लगे, तो कहां पहुंचेगी? हम उसमे भी छोटे हैं। एक उंगली भी तुम्हारे शरीर में बड़ा अनुपात रखती ळै। इस विराट विश्व में हमारा अनुपात क्या है?
इस विराट के साथ लड़ो मत।
भूख में अशुभ क्या हैं? भोजन को तृप्ति में अशुभ क्या हैं? जो स्वाभाविक सहज हैं, वह सत्य हैं,श्रेयस्कर है। स्वाभाविक सहज के लिए समर्पित हो जाओ। उस समर्पण में ही श्वास उठती है।
जीवन आधार बिजनेस सुपर धमाका…बिना लागत के 15 लाख 82 हजार रुपए का बिजनेस करने का मौका….जानने के लिए यहां क्लिक करे

Related posts

ओशो : तुम्हारा संन्यास

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—55

Jeewan Aadhar Editor Desk

ओशो :जिज्ञासु का भाव

Jeewan Aadhar Editor Desk