धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—662

बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव में धर्मनाथ नाम का सेठ रहता था। उसके पास अपार धन-दौलत थी। वह बड़े ठाठ-बाट से जीवन बिताता और गाँव भर में अपने धर्मकर्म का दिखावा करता। हर सुबह घंटा बजाते हुए मंदिर जाता, फूल-माला चढ़ाता, लंबी-चौड़ी आरती करता और बाहर आते ही सबको बताता— “देखो भाई, मैं रोज मंदिर जाता हूँ, भगवान का भक्त हूँ।”

गाँव के लोग बाहरी रूप देखकर मानते थे कि सेठ बड़ा धार्मिक है, लेकिन उसके कर्म कुछ और ही थे।

वह व्यापार में तौल-तराज़ू से धोखा देता, गरीबों की ज़मीन हड़प लेता और मजदूरों का मेहनताना काट लेता। ज़रा-सी बात पर क्रोध से भर जाता और दूसरों को अपमानित कर देता। लेकिन मंदिर जाकर फिर से माथा टेक लेता और समझता कि सब पाप धुल गए।

एक दिन गाँव में एक साधु-संत पधारे। उनके मुख पर अजीब-सी शांति और वाणी में मधुरता थी। गाँववाले उन्हें घेरकर आशीर्वाद लेने लगे। सेठ भी अपने रेशमी वस्त्र पहनकर मंदिर की ओर गया।

उस दिन भी वह धूमधाम से पूजा करने लगा—घंटियाँ बजाईं, फूल चढ़ाए, दीप जलाया। लेकिन संत थोड़ी दूरी से यह सब देख मुस्कुराने लगे।

पूजा समाप्त कर जब सेठ बाहर आया तो उसने संत को हँसते देखा और तुनककर बोला—
“महाराज, आप हँस क्यों रहे हैं? मैंने तो पूरे मन से भगवान की पूजा की है।”

संत गंभीर स्वर में बोले— “बेटा धर्मनाथ, अगर नदी का जल ऊपर से साफ़ दिखे पर भीतर कीचड़ हो तो क्या कोई उसमें स्नान कर पाएगा? इसी तरह अगर बर्तन बाहर से चमकाया गया हो लेकिन भीतर मैल भरा हो तो उसमें रखा जल भी अशुद्ध हो जाएगा। तुम्हारा मन भी ऐसा ही है—बाहर मंदिर, आरती और दान-दक्षिणा; लेकिन भीतर लालच, क्रोध और अहंकार।”

सेठ चुप हो गया।

संत ने आगे कहा— “सच्चा मंदिर पत्थरों की दीवारों में नहीं, बल्कि मन की गहराई में है। जब तक मन का मैल नहीं धुलता, तब तक मंदिर में जाना केवल आडंबर है। भगवान मूर्ति में उतना नहीं, जितना निर्मल हृदय में बसते हैं।”

संत की वाणी से धर्मनाथ के मन का घमंड टूट गया। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। वह संत के चरणों में गिर पड़ा और बोला— “महाराज! अब मैं समझ गया। मैं सच्चे मंदिर से दूर था। आज से मैं मन की सफाई करूँगा।”

उसने मजदूरों का बकाया लौटा दिया, गरीबों को अन्न बाँटा और व्यापार में ईमानदारी अपनाई। धीरे-धीरे उसका स्वभाव बदल गया।

अब गाँववाले कहते— “धर्मनाथ का मन सचमुच मंदिर बन गया है।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, अगर मन में मैल है तो मंदिर जाना केवल दिखावा है। भगवान वहीं बसते हैं जहाँ दिल पवित्र, भावनाएँ निर्मल और आचरण सच्चा हो।

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