नरसी भक्त को जब भात भरना था तो उसके पास फूटी कौड़ी तक नहीं थी। वह श्रीकृष्ण पर अटूट विश्वास और श्रद्धा को लेकर अपने साथ भक्तों की एक टोली लेकर भात भरने के लिए निकल पड़े। रस्ते में उनकी बैल गाड़ी का पहिया टूट गया। नरसी भक्त ने श्रीकृष्ण को पुकारा। श्रीकृष्ण स्वयं खाती का रुप धारण करके आए और न केवल बैलगाड़ी का पहिया ठीक किया बल्कि राजसी ठाठ—बाठ से भात भी भरवाया। यह है असंभव को संभव करने की कहानी।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, यह कहानी दर्शाती है कि जब कोई भक्त सच्चे मन से किसी भले कार्य का संकल्प लेता है और उसके पास कुछ भी नहीं बचता, तो परमात्मा स्वयं उस असंभव दिखने वाले कार्य को पूरा करने के लिए किसी भी रूप में प्रकट हो जाते हैं।
संतों और गुरुओं की कहानियों में यह सिखाया जाता है कि जब इंसान के सारे प्रयास विफल हो जाते हैं, और कार्य असंभव लगने लगता है, तब हमें 5 कार्य करने चाहिए।
1. ईश्वर/परमात्मा पर अटूट विश्वास: सबसे पहले, व्यक्ति को अपनी साधना, भक्ति, और ईश्वर में अटूट विश्वास स्थापित करना चाहिए। यह विश्वास ही सबसे बड़ी शक्ति है।
2. सच्चा संकल्प और लगन (ध्रुव चरित्र): व्यक्ति का संकल्प और लगन सच्चा होना चाहिए। जैसे बालक ध्रुव ने अडिग होकर तपस्या की, उसी तरह नामुमकिन लगने वाले लक्ष्य के लिए भी दृढ़ता ज़रूरी है।
3. समर्पण और सत्कर्म: अपनी समस्याओं को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर दें और स्वयं सत्कर्म (अच्छे कर्म) करते रहें।
4. विनम्रता और धैर्य: हर परिस्थिति में विनम्र रहें और धैर्य बनाए रखें। चमत्कार हमेशा तुरंत नहीं होते, उनके लिए सही समय का इंतज़ार करना पड़ता है।
5. गुरु का मार्गदर्शन: कई कहानियों में गुरु या संत के मार्गदर्शन की महत्ता बताई गई है, जिनके आशीर्वाद और उपदेश से कठिन मार्ग सरल हो जाता है।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जब व्यक्ति इन सिद्धांतों का पालन करता है, तो माना जाता है कि ईश्वरीय शक्ति या दैवीय कृपा उस असंभव कार्य को भी संभव बना देती है, जो मनुष्य के वश में नहीं था।









