धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 339

एक राजा अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए अपने राज्य में वेष बदलकर घूम रहे थे। राजा के साथ उनका मंत्री भी था। तभी कांटे वाली झाड़ियों की वजह से राजा कूर्ता फट गया। राजा ने मंत्री से कहा कि किसी दर्जी को तुरंत ढूंढो।

मंत्री ने जल्दी ही एक दर्जी को ढूंढ लिया और उसे बताया की राजा प्रजा का हाल जानने निकले हैं और उनका कुर्ता फट गया है। तुम्हें उसे तुरंत सही करना है, जल्दी चलो। दर्जी अपने साथ सुई-धागा लेकर राजा के पास पहुंच गया। दर्जी ने बहुत ही अच्छी तरह राजा का कुर्ता सिल दिया। राजा उसके काम से बहुत खुश हुआ, क्योंकि कुर्ते में फटा हुआ हिस्सा अब दिख नहीं रहा था।

प्रसन्न राजा ने दर्जी से कहा कि मांग लो जो तुम्हें चाहिए। दर्जी ने सोचा कि राजा से क्या मांगू। मेरा तो थोड़ा सा ही धागा लगा है। दो स्वर्ण मुद्राएं मांग लेता हूं, इससे ज्यादा तो इस छोटे से काम का पारिश्रमिक नहीं हो सकता है।

दर्जी ने फिर सोचा कि कहीं राजा ये ना समझ ले कि इतने से काम की मैंने ज्यादा मुद्राएं मांग ली हैं, राजा मुझे सजा दे देगा। उसने राजा से कहा कि महाराज छोटा सा काम था, इसका दाम कैसे ले सकता हूं। आप रहने दीजिए। राजा ने फिर कहा कि नहीं, तुमने काम किया है तो तुम्हें तुम्हारी मेहनत का पारिश्रमिक तो मिलना ही चाहिए। तुम बिना डरे मांगो।

दर्जी ने कहा कि महाराज छोटा सा काम था, आप जो उचित समझे वह मुझे दे दीजिए। राजा ने सोचा कि इस दर्जी ने तो मुझे ही परेशानी में डाल दिया। अब मुझे मेरे स्तर के हिसाब से इसे कुछ देना पड़ेगा। राजा ने मंत्री से कहा कि इस दर्जी को 2 गांव दे दो। दर्जी ये सुनकर हैरान था। उसने सोचा मैं तो 2 मुद्राएं मांगने की सोच रहा था, लेकिन राजा ने 2 गांव दे दिए।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हमें अपनी सोच बड़ी रखनी चाहिए। हम कभी-कभी अनजाने में सोच छोटी कर लेते हैं, इस कारण हमें पूरा फल नहीं मिलता है। अगर दर्जी सिर्फ 2 मुद्राएं मांग लेता तो उसे राजा 2 गांव नहीं देता।

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—303

Jeewan Aadhar Editor Desk

सत्यार्थप्रकाश के अंश—58

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—141