धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—721

पुराने समय में एक छोटा-सा गाँव था—शांत, हरियाली से भरा, पर लोगों की भागदौड़ के बीच एक युवक था—नैनसुख। जीवन में सब कुछ होते हुए भी उसके मन में एक बड़ा खालीपन था। भीड़ में रहने के बावजूद वह भीतर से अकेला महसूस करता था। घर वाले भी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर उसे क्या कमी है।

एक दिन वह परेशान होकर गाँव के किनारे स्थित पुराने मंदिर में चला गया। वहाँ एक वृद्ध संत बैठे थे—विचारों में डूबे हुए, पर चेहरा बिल्कुल शांत जैसे भीतर से रोशनी निकल रही हो।

नैनसुख ने हिम्मत करके कहा, “बाबा, मैं लोगों के बीच भी अकेला महसूस करता हूँ। मन खाली-खाली लगता है। यह अकेलापन बहुत कठिन है, मैं इससे कैसे बाहर निकलूँ?”

संत मुस्कुराए और बोले, “बेटा, अकेलापन कठिन तब लगता है जब मन भटकता है। यदि अकेले रहकर सेवा, भक्ति और सुमिरन कर लो, तो वही अकेलापन अमृत बन जाता है।”

नैनसुख को समझ नहीं आया—“अकेलापन अमृत कैसे बन सकता है?”

संत बोले, “चल, आज तुझे तीन काम देते हैं—तीन दिन तक बस ये कर और फिर बताना कि मन कैसा लगता है।”

पहला दिन—सेवा। नैनसुख ने तय किया कि वह किसी की मदद करेगा। गाँव के बाहर एक बूढ़ी अम्मा की झोपड़ी थी—उनका चूल्हा बुझा हुआ था। नैनसुख ने लकड़ियाँ लाकर चूल्हा जलाया, अम्मा को दवा दी और घर की सफाई में मदद की। अम्मा ने उसका हाथ पकड़कर कहा, “बेटा, आज भगवान ने तुझे भेजा है, तुम जीवन में सदा सुखी रहोगे।”

नैनसुख का दिल हल्का हो गया—पहली बार उसे अपने अकेलेपन में गर्माहट महसूस हुई।

दूसरा दिन—भक्ति । अगले दिन वह मंदिर गया और शांत बैठकर केवल भगवान के चरणों में मन लगाया। किसी से शिकायत नहीं, कोई मांग नहीं—बस कृतज्ञता। धीरे-धीरे उसे भीतर एक अजीब-सी शांति महसूस होने लगी, जैसे किसी ने मन का बोझ उतार दिया हो।

तीसरा दिन—सुमिरन। तीसरे दिन उसने सिर्फ एक नाम का जप किया—धीरे-धीरे, साँसों के साथ। जैसे ही वह जप करता, मन अपने आप स्थिर होने लगता। वह समझ गया कि अकेलापन खालीपन नहीं, मन को सुधारने का मौका है।

तीन दिन बाद वह फिर संत के पास पहुँचा। “बाबा, मुझे लगता है जैसे मेरे भीतर कोई दीपक जल गया हो। अकेलापन अब बोझ नहीं लगता, बल्कि अपने आप को समझने का अवसर लग रहा है।”

संत ने कहा, “यही सत्य है बेटा…। अकेलापन दुख नहीं देता, मन का खालीपन दुख देता है। जब अकेले हो, सेवा से मन भरता है, भक्ति से हृदय शुद्ध होता है, और सुमिरन से आत्मा मजबूत होती है। तब अकेलापन तुम्हारा शत्रु नहीं, तुम्हारा गुरु बन जाता है।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, अकेला रहना कमजोरी नहीं—सही दिशा में लगाया जाए तो जीवन बदलने का सबसे बड़ा अवसर है।

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