धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 758

युद्ध में अर्जुन और कर्ण आमने-सामने आ गए थे। दोनों ही धनुर्धर पराक्रमी थे। अर्जुन के बाण जब कर्ण के रथ पर लगते, तो उसका रथ 20-25 हाथ पीछे खिसक जाता था, जबकि कर्ण के बाण जब अर्जुन के रथ से टकराते, तो अर्जुन का रथ बहुत थोड़ा हिलता था।

जब भी कर्ण का बाण अर्जुन के रथ पर लगता, श्रीकृष्ण उसकी प्रशंसा कर रहे थे, लेकिन जब अर्जुन के बाण कर्ण के रथ को पीछे धकेलते, तब श्रीकृष्ण मौन रहते। ये देखकर अर्जुन के मन में अहंकार और भ्रम दोनों पैदा हो गए।

अर्जुन ने श्रीकृष्ण से प्रश्न किया कि हे केशव, मेरे बाणों से कर्ण का रथ बहुत पीछे चला जाता है, जबकि उसके बाणों से मेरा रथ थोड़ा सा ही हिलता है। फिर भी आप उसके पराक्रम की प्रशंसा कर रहे हैं, क्या उसके बाण मेरे बाणों से अधिक शक्तिशाली हैं?

श्रीकृष्ण बोले कि अर्जुन, तुम्हारे रथ पर मैं स्वयं बैठा हूं। ध्वज पर हनुमान जी विराजमान हैं और रथ के पहियों को शेषनाग थामे हुए हैं। इतनी शक्तियों के बावजूद यदि कर्ण के बाण से ये रथ थोड़ा भी हिलता है, तो सोचो कर्ण का पराक्रम कितना महान है, तुम्हारे साथ दैवीय शक्तियां हैं, जबकि कर्ण केवल अपने पुरुषार्थ के बल पर युद्ध कर रहा है।

ये सुनते ही अर्जुन का अहंकार टूट गया। उसे समझ आ गया कि किसी की बाहरी स्थिति देखकर उसे कमजोर समझना सबसे बड़ी भूल है।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जब हम अपनी उपलब्धियों को केवल अपनी क्षमता मानने लगते हैं, तब अहंकार जन्म लेता है। सफलता में कई अदृश्य सहायक शक्तियां हमारे साथ होती हैं, जैसे परिवार, गुरु, परिस्थितियां और ईश्वर। इसलिए कभी भी सफल होने के बाद अहंकार नहीं करना चाहिए। जब हम अपने सहयोगियों और परिस्थितियों के प्रति कृतज्ञ रहते हैं, तब अहंकार स्वतः कम हो जाता है और मानसिक शांति बढ़ती है।

Shine wih us aloevera gel

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 632

स्वामी राजदास : स्त्री और नमक

Jeewan Aadhar Editor Desk

ओशो : काहे होत अधीर