एक समय की बात है। एक गाँव में एक युवक रहता था। वह ईमानदार, मेहनती और आगे बढ़ने की तीव्र इच्छा रखने वाला था। उसने कई काम शुरू किए—कभी व्यापार, कभी खेती, कभी नौकरी की तैयारी—लेकिन हर बार थोड़े समय बाद असफलता उसके सामने खड़ी हो जाती। धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास टूटने लगा।
एक दिन वह पास के जंगल में रहने वाले एक प्रसिद्ध संत के पास पहुँचा। आँखों में थकान और मन में प्रश्न था। उसने कहा, “महाराज, मैं लगातार कोशिश करता हूँ, पर जीवन में स्थायी सफलता क्यों नहीं मिलती?”
संत उसे आश्रम के पीछे ले गए, जहाँ एक बड़ा मैदान था। उन्होंने युवक को चार दिन तक अपने साथ रखा।
पहले दिन संत ने कहा, “आज केवल बैठो और अपने विचारों को देखो।”
युवक को यह सरल लगा, लेकिन दिन ढलते-ढलते वह समझ गया कि उसके विचार नकारात्मकता, डर और जल्दबाज़ी से भरे हैं।
संत बोले, “जहाँ विचार गलत होंगे, वहाँ कर्म भी भटकेंगे।”
दूसरे दिन संत ने युवक से खेत की मेड़ बनाने को कहा। बिना मेड़ के पानी बह जाता था।
संत ने समझाया, “योजना मेड़ की तरह होती है। बिना सही योजना के मेहनत भी बह जाती है।”
तीसरे दिन युवक ने बीज बोए। वह रोज़ जाकर ज़मीन खोदकर देखने लगता कि अंकुर निकला या नहीं।
संत ने उसे रोका और कहा, “धैर्य वह शक्ति है, जो बीज को टूटने से बचाती है। जो जल्दी देखना चाहता है, वह जड़ें कमजोर कर देता है।”
चौथे दिन संत ने युवक को रोज़ थोड़ा-थोड़ा पानी देने का नियम दिया।
संत बोले, “निरंतर प्रयास वही है, जो छोटे काम को भी बड़ा बना देता है।”
समय बीता। कुछ बीज जल्दी उगे, कुछ देर से, और कुछ बिल्कुल नहीं।
तब संत ने कहा, “सफलता का मतलब हर प्रयास में जीत नहीं, बल्कि सही प्रयास को समय देना है।”
युवक की आँखें खुल गईं। वह समझ गया कि अच्छे विचार दिशा देते हैं, सही योजना ऊर्जा बचाती है, धैर्य समय के साथ चलना सिखाता है और लगातार प्रयास भाग्य को भी बदल देता है।
वह युवक लौट गया—लेकिन इस बार केवल उम्मीद लेकर नहीं, बल्कि समझ, अनुशासन और विश्वास लेकर। और यही उसकी सच्ची सफलता की शुरुआत बनी।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जो व्यक्ति विचार, योजना, धैर्य और प्रयास—इन चारों को साथ लेकर चलता है, उसे मंज़िल तक पहुँचने से कोई रोक नहीं सकता।








