आदमपुर (मोहित)
अपनी महत्ता के कारण ही गुरु को ईश्वर से भी उंचा पद दिया गया है। शास्त्रों के अनुसार गुरु को ही ईश्वर के विभिन्न रूपों में स्वीकार किया गया है। गुरु को ब्रहा कहा गया है क्योंकि वह शिष्य को बनाता है नव जन्म देता है। उक्त विचार मंगलवार को श्री कृष्ण प्रणामी सत्संग भवन में प्रणामी मिशन के प्रमुख स्वामी सदानंद जी महाराज के 64वें नामधारण दिवस आयोजित एकदिवसीय कार्यक्रम के दौरान श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए प्रचारिका सरिता सचदेवा ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा गुरु विष्णु भी है क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है, गुरु महेश भी है क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार कर देता है। संत कबीर ने अपनी वाणी में कहा था हरि रूठें गुरु ठौर है, गुरु रूठें नहीं ठौर। कहने का अर्थ है कि भगवान के रूठने पर गुरु की शरण रक्षा कर सकती है किंतु गुरु के रूठने पर कहीं भी शरण मिलना संभव नहीं है। सतगुरु की महिमा अनंत अपरंपार है।
उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, कवि, सन्त, मुनि आदि सब गुरु की अपार महिमा का बखान करते हैं। शास्त्रों में ‘गु’ का अर्थ ‘अंधकार या मूल अज्ञान’ और ‘रू’ का अर्थ ‘उसका निरोधक’ बताया गया है, जिसका अर्थ ‘अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला’ अर्थात अज्ञान को मिटाकर ज्ञान का मार्ग दिखाने वाला ‘गुरु’ होता है। गुरु अपने शिष्य पर अनंत उपकार करते है। कार्यक्रम के उपरांत श्रद्धालुओं ने गौशाला में जाकर गौमाता के लिए दलिया की स्वामणी का भोग लगाकर अपने गुरु की लंबी उम्र की कामना की।