धर्म

ईश्वर तो समग्रता है

किसी देश में क्रांति हो गई थी। वहां के क्रांतिकारी सभी कुछ बदलने में लगे थे। धर्म को भी वे नष्ट करने पर उतारु थे। उसी सिलसिले में एक वृद्ध फकीर को पकड़ का अदालत में लाया गया। उस फकीर से उन्होंने पूछा,’ईश्वर में क्यों विश्वास करते हो?’ वह फकीर बोला,’महानुभाव, विश्वास मैं नहीं करता। लेकिन ईश्वर है। अब मैं क्या करूं?’ उन्होंने पूछा,’यह तुम्हें कैसे ज्ञात हुआ कि ईश्वर है?’ वह बूढ़ा बोला,”आंखें खोलकर जब से देखा, तब से उसके अतिरिक्त और कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता है।” उस फकीर के प्रत्युत्तरों ने अग्रि में घृत का काम किया। वे क्रांतिकारी बहुत क्रुद्ध हो गए और बोले,’शीघ्र ही हम तुम्हारे सारे साधुओं को मार डालेंगे। वह बूढ़ा हंसा और बोला,’जैसी ईश्वर की मर्जी।’ ‘लेकिन हमने तो धर्म के सारे चिह्नों को ही मिटा डालने का निश्चय किया है। ईश्वर का कोई भी चिह्न हम संसार में न छोड़ेंगे।’ वह बूढ़ा बोला,’बेटे! यह बड़ा ही कठिन काम तुमने चुना है, लेकिन ईश्वर की जैसी मर्जी। सब चिह्न कैसे मिटाओगे? जो भी शेष होगा, वही उसकी खबर देगा। कम से कम तुम तो शेष रहोगे ही, तो तुम्हीं उसकी खबर दोगे। ईश्वर को मिटाना असंभव है, क्योंकि ईश्वर तो समग्रता है।’ईश्वर को एक व्यक्ति की भांति सोचने से ही सारी भ्रांतियां खड़ी हो गई हैं। ईश्वर कोई व्यक्ति नहीं। वह जो है, वही है। और ईश्वर में विश्वास करने के विचार से भी बड़ी भूल हो गई हैं। प्रकाश में विश्वास करने का क्या अर्थ? उसे तो आंखें खोलकर ही जाना जा सकता है।

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से — 673

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 604

ओशो : गहराई में डूबकी