धर्म

ओशो, काहे होत अधीर (पलटू), प्रवचन 12

ईश्वर कोई व्यक्ति नहीं है। ईश्वर शब्द से व्यक्ति की भ्रांति पैदा होती है। ईश्वरत्व है, ईश्वर नहीं। भगवत्ता है, भगवान नहीं। यह सारा जगत दिव्यता से परिपूरित है। इसका कण-कण, रोआं-रोआं एक अपूर्व ऊर्जा से आपूरित है। लेकिन कोई व्यक्ति नहीं है जो संसार को चला रहा हो।

हमारी ईश्वर की धारणा बहुत बचकानी है। हम ईश्वर को व्यक्ति की भांति देख पाते हैं। और तभी अड़चनें शुरू हो जाती हैं। जैसे ही ईश्वर को व्यक्ति माना कि धर्म पूजा-पाठ बन जाता है; ध्यान नहीं, पूजा-पाठ, क्रिया-कांड, यज्ञ-हवन। और ऐसा होते ही धर्म थोथा हो जाता है। किसकी पूजा? किसका पाठ? आकाश की तरफ जब तुम हाथ उठाते हो, आंखें उठाते हो, तो वहां कोई भी नहीं है। तुम्हारी प्रार्थनाओं का कोई उत्तर नहीं आएगा।

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—166

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—176

ओशो : पत्थर