धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज—148

देवों और असुरों में घोर युद्ध हो रहा था। राक्षसों के शस्त्र बल और युद्ध कौशल के सम्मुख देवता टिक ही नहीं पाते थे। वे हार कर जान बचाने भागे, सब मिलकर महर्षि दत्तात्रेय के पास पहुँचे और उन्हें अपनी विपत्ति की गाथा सुनाई।

महर्षि ने उन्हें धैर्य बँधाते हुए पुनः लड़ने को कहा। फिर लड़ाई हुई। किंतु देवता फिर हार गए और फिर जान बचाकर भागे महर्षि दत्तात्रेय के पास। अब की बार असुरों ने भी उनका पीछा किया। वे भी दत्तात्रेय के आश्रम में आ पहुँचे। असुरों ने दत्तात्रेय के आश्रम में उनके पास बैठी हुई एक नवयौवना स्त्री को देखा।

बस, दानव लड़ना तो भूल गए और उस स्त्री पर मुग्ध हो गए। स्त्री जो रूप बदले हुए लक्ष्मी जी ही थी, असुर उन्हें पकड़ कर ले भागे। दत्तात्रेय जी ने देवताओं से कहा – अब तुम तैयारी करके फिर से असुरों पर चढ़ाई करो।” लड़ाई छिड़ी और देवताओं ने असुरों पर विजय प्राप्त की।

असुरों का पतन हुआ। विजय प्राप्त करके देवता फिर दत्तात्रेय के पास आए और पूछने लगे -‘भगवन्‌! दो बार पराजय और अंतिम बार विजय का रहस्य क्या है ?’

महर्षि ने बताया -“जब तक मनुष्य सदाचारी संयमी रहता है तब तक उसमें उसका पूर्ण बल विद्यमान बना रहता है और जब वह कुपथ पर कदम धरता है तो उसका आधा बल क्षीण हो जाता है। नारी का अपहरण करने की कुचेष्टा में असुरों का आधा बल नष्ट हो गया था, तभी तुम उन पर विजय प्राप्त कर सके।”

प्रेमी सुंदरसाथ जी, जीवन में कभी भी पराई स्त्री को छूना नहीं। किसी को बुरी नजर से मत देखना। जिसने भी पराई स्त्री के तरफ गलत नीयत से देखा या कदम बढ़ाया उसका पतन हो गया। वो चाहे महाबलीशाली बाली हो या विद्यमान रावण।

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Jeewan Aadhar Editor Desk

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