धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से-11

एक जंगल में एक शेर रहता था। वो अब कुछ बूढा हो चुका था। वो अकेला ही रहता था। कहने को वो शेर था लेकिन उसमें शेर जैसी कोई बात ना थी। अपनी जवानी में वो सारे शेरों से लडाई में हार चुका था।

अब उसके जीवन में उसका एक दोस्त एक गीदड़ ही था। वो गीदड़ अव्वल दर्जे का चापलूस था। शेर को ऐसे एक चमचे की जरुरत थी। जो उसके साथ रहता और गीदड़ को बिना मेहनत का खाना चाहिए था।

एक बार शेर ने एक सांड पर हमला कर दिया। सांड भी गुस्से में आ गया। उसने शेर को उठा कर दूर पटक दिया। इस से शेर को काफी चोट आई। किसी तरह शेर अपनी जान बचा कर भागा। जान तो बच गयी लेकिन जख्म दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे थे। जख्मों और कमजोरी के कारण शेर कई दिन तक शिकार ना कर सका और अब भूख से शेर और गीदड़ की हालत ख़राब होने लगी।

“देखो मैं जख्मी होने के कारण शिकार करने में असमर्थ हूँ। तुम जंगल में जाओ और किसी मुर्ख जानवर को लेकर आओ मैं यहाँ झाड़ियों के पीछे छिपा रहूँगा और उसके आने पर उस पर हमला कर दूंगा। तब हम दोनों के खाने का इंतजाम हो जाएगा।” शेर ने भूख से ना रहे जाने पर कहा। गीदड़ ने उसकी आज्ञा के अनुसार एक मुर्ख जानवर की तलाश करने के लिए निकल पड़ा।

जंगल से बाहर जाकर उसने देखा एक गधा सूखी हुयी घास चर रहा था। गीदड़ को वो गधा देखने में ही मूर्ख लगा।
गीदड़ उसके पास गया और बोला,
“नमस्कार चाचा, कैसे हो? बहुत कमजोर हो रहे हो। क्या हुआ?”
सहानुभूति पाकर गधा बोला,“नमस्कार, क्या बताऊँ मैं जिस धोबी के पास काम करता हूँ। वह दिन भर काम करवाता है। पेट भर चारा भी नहीं देता।”

“तो चाचा तुम मेरे साथ जंगल में चलो। वहां बहुत हरी-हरी घास है। आप की सेहत भी अच्छी हो जाएगी।”
“अरे! नहीं मैं जंगल नहीं जाऊंगा। वहां मुझे जंगली जानवर खा जाएँगे।”
“चाचा, तुम्हें शायद पता नहीं चला। जंगल में एक बगुले भगत जी का सत्संग हुआ था। तब से जंगल के सारे जानवर शाकाहारी हो गए हैं।”
इतना सुन गधे के मन में एक ख़ुशी की लहर दौड़ गयी। वह गीदड़ के साथ जाने के लिए राजी हो गया। गधा जब गीदड़ के साथ जंगल में पहुंचा तो उसे झाड़ियों के पीछे शेर की चमकती हुयी आँखें दिखाई दीं। उसने आव देखा ना ताव। ऐसा भागना शुरू किया कि जंगल के बहार आकर ही रुका।

“भाग गया? माफ़ करना दोस्त इस बार मैं तैयार नहीं था। तुम दुबारा उस बेवक़ूफ़ गधे को लेकर आओ। इस बार कोई गलती ना होगी।”
गीदड़ एक बार फिर उस गधे के पास गया। उसे मानाने के लिए गीदड़ ने मन में नई योजना बनायी, “अरे चाचा, तुम वहां से भाग क्यों आये?”

“भागता ना तो क्या करता? वहां झाड़ियों के पीछे शेर बैठा हुआ था। मुझे अपनी जान प्यारी थी तो भाग आया।”
“हा हा हा… अरे वो कोई शेर नहीं वो गधी थी ।”
“लेकिन उसकी तो आंखें चमक रहीं थी।”

“वो तो उसने जब आपको देखा तो ख़ुशी के मारे उसकी आँखों में चमक आ गयी। और आप उस से मिले बिना ही वापस दौड़ आये।”
गधे को अपनी इस हरकत पर बहुत पछतावा हुआ। वह गीदड़ कि चालाकी को समझ नहीं पा रहा था। समझता भी कैसे आखिर था तो गधा ही।

वो गीदड़ की बातों में आकर फिर से जंगल में चला गया। जैसे वो झाड़ियों के पास पहुंचा। इस बार शेर ने कोई गलती नहीं कि और उसका शिकार कर अपने भोजन का जुगाड़ कर लिया।

प्यारे सुंदरसाथ जी, जब तक इन्सान को ठोकर नहीं लगती उसे अक्ल नहीं आती। इस लिए ठोकर खाना अच्छी बात है। लेकिन एक ही पत्थर से बार-बार ठोकर खाना बेवकूफी की निशानी होती है। जैसा की गधे ने किया।

समाज में गीदड़ जैसे चापलूस बहुत भरे पड़े है, सदा इनसे सावधान रहना। ये चापलूस लोग अपना मतलब सिद्ध करने के लिए बार—बार लुभावने सपने दिखाते है और मौका मिलते ही अपना काम निकलवाकर तुम्हें बड़ी समस्या में धकेल कर चले जाते है।

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