धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से-13

एक राजा के पास एक नौकर था। जिसका काम राजा के श्यन कक्ष की देख-रेख और साफ़ सफाई करना था। एक बार राजा का नौकर उनके शयन कक्ष की सफाई कर रहा था,सफाई करते—करते उसने राजा के पलंग को छूकर देखा तो उसे बहुत ही मुलायम लगा। उसे थोड़ी इच्छा हुई कि उस बिस्तर पर जरा लेट कर देखा जाए कि कैसा आनंद आता है। उसने कक्ष के चारों और देख कर इत्मीनान कर लिया कि कोई देख तो नहीं रहा।

जब वह आश्वस्त हो गया कि कोई उसे देख नहीं रहा है तो वह थोड़ी देर के लिए बिस्तर पर लेट गया।

वह नौकर काम कर के थका-हारा था,अब विडम्बना देखिये कि बेचारा जैसे ही बिस्तर पर लेटा,उसकी आँख लग गयी। थोड़ी देर के लिए वह उसी बिस्तर पर सो गया..उसके सोये अभी मुश्किल से पांच मिनट बीते होंगे कि तभी कक्ष के सामने से गुजरते प्रहरी की निगाह उस सोये हुए नौकर पर पड़ी।

नौकर को राजा के बिस्तर पर सोते देख प्रहरी की त्यौरियां चढ़ गयी।उसने तुरंत अन्य प्रहरियों को आवाज लगायी। सोते हुए नौकर को लात मार कर जगाया और हथकड़ी लगाकर रस्सी से जकड़ लिया गया।
नौकर को पकड़ लेने के पश्चात उसे राजा के दरबार तक खींच के लाया गया।

राजा को सारी वस्तुस्थिति बताई गयी…उस नौकर की हिमाकत को सुनकर राजा की भवें तन गयी,यह घोर अपराध!! एक नौकर को यह भी परवाह न रही कि वह राजा के बिस्तर पर सो गया।

राजा ने फ़ौरन आदेश दिया ‘नौकर को उसकी करनी का फल मिलना ही चाहिए,तुरत इस नौकर को 50 कोड़े भरी सभा में लगाये जाएँ।’
नौकर को बीच सभा में खड़ा किया गया,और कोड़े लगने शुरू हो गए।
लेकिन हर कोड़ा लगने के बाद नौकर हँसने लगता था। जब 10—12 कोड़े लग चुके थे,तब भी नौकर हँसता ही जा रहा था,राजा को यह देखकर अचरच हुआ।

राजा ने कहा ‘ठहरो!!’
सुनते ही कोड़े लगाने वाले रुक गए,और चुपचाप खड़े हो गए।
राजा ने नौकर से पूछा ‘यह बताओ कि कोड़े लगने पर तो तुम्हे दर्द होना चाहिए,लेकिन फिर भी तुम हंस क्यूँ रहे हो?’

नौकर ने कहा ‘हुजूर,मैं यूँ ही हंस नहीं रहा,दर्द तो मुझे खूब हो रहा है,लेकिन मैं यह सोचकर हँस रहा हूँ कि थोड़ी देर के लिए मैं आपके बिस्तर पर सो गया तो मुझे 50 कोड़े खाने पड़ रहे हैं,हुजूर तो रोज इस बिस्तर पर सोते हैं,तो उन्हें ऊपरवाले के दरबार में कितने कोड़े लगाये जायेंगे।’

इतना सुनना था कि राजा अनुत्तरित रह गए,उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने तुरत उस नौकर को आजाद करने का हुक्म दे दिया।

प्यारे सुंदरसाथ, कभी भी पैसे—पद के अहं में आकर गरीब पर अत्याचार नहीं करना चाहिए। क्योंकि प्रभु के दरबार में ना कोई गरीब है और ना ही कोई अमीर। वहां सबकों समान रुप से कर्मो का फल मिलता है।

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