धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रचवनों से—149

पांडव वन में थे। एक दिन उन्हें बहुत जोरों की प्यास लगी। सहदेव पानी की तलाश में भेजे गए। शीघ्र ही उन्होंने एक सरोवर खोज लिया पर अभी पानी पीने को ही थे, कि यक्ष की आवाज आई- “मेरे प्रश्नों का उत्तर दिए बिना पानी पिया तो अच्छा न होगा ”!

सहदेव प्यासे थे। आवाज की ओर ध्यान न देकर पानी पी लिया और वहीं मूच्छित होकर गिर पड़े। नकुल, भीम और अर्जुन भी आए और मूर्च्छित होकर गिर गए। अंत में धर्मराज युधिष्ठिर पहुँचे।

यक्ष ने उनसे भी वही बात कही। युधिष्ठिर ने कहा -देव ! बिना विचारे काम करने वाले अपने भाइयों की स्थिति मैं देख रहा हूँ। आपके प्रश्न का उत्तर दिए बिना पानी ग्रहण न करूँगा। प्रश्न पूछिए। यक्ष ने पूछा -‘ किमाश्चर्यम्‌’ अर्थात संसार में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?

युधिष्ठिर ने उत्तर दिया -देव! एक-एक व्यक्ति करके सारा संसार मृत्यु के मुख में समाता जा रहा है, फिर भी जो जीवित हैं, वे सोचते हैं कि हम कभी न मरेंगे, इससे बढ़कर आश्चर्य और क्या हो सकता है। यक्ष बहुत प्रसन्‍न हुए और पानी पीने की आज्ञा दे दी और चारों भाइयों को भी जीवनदान दे दिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, याद रखना चाहिए इस संसार में कोई स्थाई नहीं है। पोत्र—पड़पोत्र तक का धन संचय करने में लगे रहते हैं, लेकिन भरोसा अगले पल का नहीं। ऐसे में व्यर्थ की चिंता व सात पीढ़ी तक के धन संचय के स्थान पर दीन—दुखियों की सेवा के लिए भी समय निकालना चाहिए। इस लोक की जगह दूसरे लोक का धन संचय अर्थात दया, धर्म और सिमरन को भी एकत्रित करना चाहिए। तभी कल्याण होगा।

Related posts

ओशो : अंधेरे से मत लड़ो,दीए को जलाओं

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—189

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—368

Jeewan Aadhar Editor Desk