धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—54

एक दिन सिन्धु देश के राजा रहूगण पालकी में बैठकर कपिल ऋषि के आश्रम में ज्ञान प्राप्त करने के लिए जा रहे थे। पालकी उठाने वाले चार सेवकों में से एक को ठोकर लगी, गिर कर हड्डी टूट गई,तो राजा ने कहां जंगल में कोई भी मिले उसे पकड़ लाओ। जंगल में गए देखा एक अलमस्त फकीर पड़ा है- जड़भरत। उसी को पकड़ लाए और पालकी उठाने में लगा दिया। पालकी को उठाकर जड़ भरत चलने लगे, लेकिन दृष्टि आगे देखती है कि कहीं पाँव के नीचे छोटे छोटे जीव जन्तु, कीड़े मकौड़ी आदि न आ जाए, उनको बचाने के लिए कभी पाँव आगे रखता है, कभी पीछे। जब चलने में उबड़-खाबड़ होती है, तो पालकी भी ऊपर -नीचे होती है, राजा को झटका लगता है तो गुस्सा आता है और हैन्टर मारता है और कहता है, अरे मिट्टी के माधो। ठीक चलो ।

राजा ने जब हैन्टर मारे तो जड़भरत की चमड़ी छिल गई, खून बहने लगा, पाँव लडख़ड़ाने लगे, चलने में असमर्थ हो गया तो चुपचाप पालकी को नीचे रखा और बैठ कर सुस्ताने लगे और कहने लगे, हे राजन्। मिट्टी को ही कंधों पर उठा रखा है, मिट्टी पर ही चल रहा हूँ और एक दिन मिट्टी में मिल जाऊंगा। सुनकर राजा ने सोचा यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है, ज्ञानवान लगता हैं, जड़भरत ने कहा, जड़भरत ने कहा, हे राजन् यह पाँच तत्व से बना शरीर तभी तक चलायमान है जब तक इसमें चेतन-आत्मा का निवास है, जिस दिन इससे चेतन पदार्थ अलग हो जायेगा, उस दिन इस मिट्टी से बने हुई शरीर को सगे सम्गन्धी चिता पर रखकर जला देंगे और इस शरीर की मुठ्ठी राख बन जायेगी । अत: होश में आओ राजन् यह दुनियां तो मुसाफिर खाना है,धर्मशाला है। यहाँ अनेंकों आते हैं और जाते हैं। जिस माया को एकत्रित करके मनुष्य अभिमान करता है, वह यहीं रह जाती हैं। इस जीवन का सार केवल भक्ति है।

भक्ति रूपी धन राशि को जितना एकत्रित कर सको,करो और अगले जन्म के लिए निश्चिन्त रहो। भक्त का जीवन परमात्मा के लिए ही होता है। कितना आश्र्चय है कि भगवान् तुम्हें मुक्त कर सकेंगे? पता नहीं इन्सान इन मूर्तियों में भगवान् की खोजने के लिए कहाँ कहाँ जाता है- कभी अमरनाथ, कभी बद्रीनाथ,कभी कैलास पर्वत पर, तो कभी हरिद्वार, परन्तु भगवान कहीं मिले? नहीं मिले।

अरे भोले इन्सान। यदि परमात्मा को पाना चाहते तो अपने हृदयरूपी मन्दिर में उसको खाजिए वो अवश्य मिलेंगे। परिश्रम सही दिशा में हो, सही वस्तु में हो तो फल अवश्य मिलेंगे अन्यथा हिरण की नाभि में कस्तूरी होती है और अज्ञानतावश वह उसे जंगल में खोजता है, खोजते-खोजते , दौड़ते-दौड़ते जिन्दगी समाप्त हो जाती हैं, परन्तु कस्तूरी नहीं मिल पाती। इसी प्रकार खोज सही करो, मक्खन पाना चाहते हो तो दुध- दही का मन्थन करो-अवश्य मिलेगा।

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