धर्म

ओशो : का सौवे दिन रैन-222

जब बुद्ध ने राजमहल छोड़ा और जब वे राजमहल छोड़ कर अपने राज्य से चले गए, तो जिस राज्य में गए उसी राज्य का राजा, उसी राज्य-परिवार के लोग उनको समझाने आए। वे अपना राज्य छोडक़र इसलिए गए थे कि राज्य के भीतर रहेंगे तो पिता आदमियों को समझाने भेजेंगे। मगर वे बड़े हैरान हुए कि जिनसे कोई संबंध न था, जिसने कोई पहचान न थी, वे भी समझाने आए। यही नहीं जिनसे उनके पिता की दुश्मनी थी, वे भी समझाने आए। तब तो बहुत प्रसिद्ध बुद्ध चकित हुए कि इनसे तो पिता का जीवन-भर विरोध रहा, ये तो दुश्मन थे, एक-दूसरे की छाती पर तलवार लिए खड़े रहे। दुश्मन क्यों समझाने आया? दुश्मन को तो खुश होना चहिए कि अच्छा हुआ, बरबाद हुआ यह परिवार। क्योंकि बुद्ध अकेले बेटे थे।
इकलौता बेटा भाग गया घर से। यह परिवार नष्ट हो गया। बाप बूढ़ा था, इकलौता बेटा भाग गया। अब इस परिवार का कोई भविष्य नहीं है। इस परिवार को नष्ट किया जा सकता है,इसके राज्य को हड़पा जा सकता है। लेकिन नहीं वे भी समझाने आए। क्यों समझाने आए? क्योंकि बुद्ध ने समस्त राज-परिवारों में तहलका मचा दिया। उनको भी शक पैदा होने लगा:हम जो यह सिहासन पर बैठे जो कर रहे हैं वह ठीक है? हम जो यह पद को पकड़े बैठ है कहीं ऐसा तो नहीं कि जीवन जीवन गंवा रहे है?
कही यह भाग आया सिद्धार्थ ही सही न हो।
ये संदेह उठने लगे। ये गहरे संदेह थे। इन गहरे संदेहों को दबाने के लिए एक ही उपाय था- इसको किसी तरह समझा-बूझा कर वापस कर लो। यह आदमी गंवा चिह्न बन गया है। जीवन आधार नवंबर माह प्रतियोगिता.. प्ले ग्रुप से दसवीं तक विद्यार्थी और स्कूल दोनों जीतेंगे सैंकड़ों उपहार.. अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे
राजाओं ने कहा कि हमारे घर आ जाओ। तुम्हारी पिता से नहीं बनती होगी, कोई फ्रिक न करो। अगर पिता से नहीं बनती, हम समझ सकते है। यह तुम्हारा राज्य हैं, इसको अपने आप समझो। मेरी बेटी जवान हैं, उससे विवाह कर लो। मेरी अकेली ही बेटी हैं, तुम्हीं इस राज्य के मालिक हो जाओगे। यह तुम्हारे पिता के राज्य से दोगुना बड़ा राज्य है।
लेकिन बुद्ध हंसते। वे कहते कि छोटे और बड़े राज्य का सवाल नहीं है। राज्य ही व्यर्थ है। मेरा पिता से कोई झगड़ा नहीं है। मेरा कोई विरोध नहीं है किसी से। मुझे इस जीवन की तथाकथित सुख-सुविधा, इस जीवन की तथाकथित पद-प्रतिष्ठा व्यर्थ दिखाई पड़ गई है। तब एक खाई से निकला और दूसरी में गिरूं। धन्यवाद तुम्हारी कृपा का। नौकरी करना चाहते है, तो यहां क्लिक करे।
लेकिन जिन राजाओं ने उनसे आकर प्रार्थना की थी, वे सो न सके होंगे रातों में। उनके मन में विचार उठते रहे होंगे कि कहीं यह ठीक न हो। और क्यों न उठेंगे विचार, क्योंकि जिन्दगी उन्होंने भी गवायीं है, पाया क्या है? प्रमाण तो सब बुद्ध के पक्ष में हैं, भीड़ उनके पक्ष में हैं। इस भेद को खयाल में कर लेना। समाचार सहायक/पत्रकारों के लिए सबसे बड़ा अवसर…जीवन आधार न्यूज पोर्टल से जुड़े—जीवन को आनंदमयी बनाये…
प्रमाण तो धर्म के पक्ष में है, भीड़ संसार के पक्ष में है। प्रमाण तो ध्यान के पक्ष में हैं, भीड़ धन के पक्ष में है। तुम भी जीवन से जानते हो, क्या पाया हैं? लेकिन अगर तुम इस बात की घोषणा करोगे कि यहां कुछ भी नहीं है… अगर एक चोर घोषणा कर दे कि मैं साधु होता हूं, बाकी चोर हंसेगे कि पागल हुआ, इसने बुद्धि गंवायी।
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