संसार में जब बच्चा 6दिन का होता है तो उसके बाद एक उत्सव मनाया जाता है जिसको छठी उत्सव कहतें हैं। हर उत्सव के पीछे कोई न कोई महत्तव अवश्य होता है। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार छठी रात को ब्रहा्राजी द्वारा भेजी गई बेमाता भाग्य लिखने के लिए आती है। जीवन पर्यन्त की सभी घटनाएँ लिखकर बेमाता चली जाती है, इसलिए परिवार वाले, सारे सगे सम्बन्धी उस रात को जगाते हैं।
भजन संकीर्तन आदि करते हैं। जैसा वातावरण बेमाता देखती है उसी के अनुसार बालक का भाग्य लिख देती है, क्योंकि जैसे माहौल में बच्चा पलता है वैसा ही वह बड़ा होकर बनता है, कहा भी है जैसा संग वैसा रंग परन्तु आजकल कुछ विपरीत वातावरण होता है। भजन आदि न करके तास खेलते हैं, खाते पीते हैं, नाचते हैं, जुआ खेलते है तो बच्चा भी बड़ा होकर शराबी, जुआरी व्यसनी बन जाता है।
इसलिए धर्म प्रेमी आत्माओं हमेशा यह ध्यान रखें कि कोई भी उत्सव हो, उसकी मर्यादा रखों। उसमें शराब, मांस, जुआ आदि व्यसनों को बढ़ावा मत दो। खुशियाँ मनाते समय धार्मिकता का अवश्य ध्यान रखो।