धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—57

एक ब्राहा्रण बालक था, नाम था अजामिल। अजा-मिल अर्थात जो माया से मिला हुआ है, उसको अजामिल कहते हैं। प्रत्येक जीव माया के चक्र में फंस ही जाता है। अजामिल भी युवावस्था में ही बुरी संगत में पड़ गया और एक दिन पिंगला वेश्या के यहाँ पहुंच गया और कामांध होकर उसी से शादी कर ली और वहीं रहने लगा। माता-पिता की लापरवाही के कारण ही बच्चे कुसंगत में पड़ते हैं और उसका परिणाम बुरा होता है। अत: माँ बाप को 16 से 25 वर्ष की उम्र के बीच के समय उनका बच्चा किसके साथ रहता है, कहाँ जाता है आदि का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि यह समय किशोर और युवावस्था का संगम होता है। इस समय बच्चे में स्वछन्द और स्वतन्त्र होने की प्रकृति ज्यादा होती है, अत: अधिक सावधानी और सर्तकता की आवश्यकता होती है। जैसे कुम्हार मटका बनाते समय एक हाथ मटके के अन्दर रक्षा हेतु रखता है और दूसरे हाथ से बनाने के लिए धीरे-धीरे ऊपर से चोट भी मारता है, इसी प्रकार प्रत्येक माँ-बाप का यह कर्तव्य बनता है कि बच्चे को सत्पे्रणा दे, सत्संग में लगाए और कुसंगत से बचाए ताकि उनका भविष्य उज्ज्वल बन सके।

व्यसन कभी अकेला नहीं आता, सातों व्यसन एक साथ आते हैं। अजामलि भी प्रतिदिन शराब पीता है, जुआ खेलता है, मांस -खाता है, चोरी करता है इत्यादि। एक दिन भिक्षा मांगते हुए एक सन्त उनके दरवाजे पी पहुंच गए। सन्ध्या का समय था, बाहर से सन्त ने आवाज लगाई , भिक्षा देहि, अलख निरंंजन,। पिंगला ने आवाज सुनी और खाद्य सामग्री लेकर दौड़ी दरवाजे पर आई कहने लगी, आज मेरे भाग्य जगे हैं जो सन्तों का पदार्पण मेरे दरवाजे पर हुआ है। हे महाराज आज तक इस दरवाजे पर कोई सन्त , महन्त तथा भक्त नहीं आया, यहाँ हमेशा शराबी, जुआरी औश्र व्याभिचारी ही आते हैं। सन्त ने ऊपर देखा तो घबरा गए- मैं कहाँ आ गया? सामने पिंगला बड़े सुन्दर कपड़े, आभूषण पहने खड़ी है, पूछा देवी तुम कौन हो? वेश्या हँसने लगी और बोली, महाराज मैं कोन हूं? यह तो आज तक कोई नहीं बता सके। जो प्रश्र आप मुझसे पूछ रहे हो यही प्रश्र श्रीराम् ने गुरू वशिष्ठजी से पूछा था- हे गुरूदेव मैं कौन हूं? जब उन्होंने इस छोटे से प्रश्र का उत्तर दिया तो पूरा ग्रन्थ बन गया योगवाशिष्ठ हे महाराज। सब कहते हैं कि तू मेरी , तू मेरी है ,लेकिन मुझे नहीं पता कि मेरा कौन है? यह मेरा शरीर बदनाम गणिका के नाम से जाना जाता है और मेरी आत्मा कौन है? यह तो महाराज आप ही बता सकते हो। सन्त पीछे हटने लगे तो गणिका ने कहा, महाराज आप बदनामी के डर से पीछे हटते हैं, यह ठीक नहीं। शायद आपके सन्त वाणी नहीं पढ़ी-सन्त-गुरूजन कभी अपने आप कसी के दरवाजे पर नहीं जाते उसको तो परमात्मा ही प्ररेत करके किसी के कहाँ भेजते हैं।

महाराज परमात्मा की कृपा के बिना सन्त मिलन नहीं होता। आज मुझ-पतिता पर प्रभु की कृपा हुई, तभी आपका यहां पदार्पण हुआ है। महाराज मैं अधम हूँ, पापी हूँ, परन्तु मैं कभी अपने अवगुण नहीं छिपाती, मैं अधम कार्य करती हूँ, परन्तु प्रभु से नित्य प्रतिदिन प्रार्थना करती हूँ, हे भगवान आप पतित-पावन हैं यदि आपके मुझ पतित का उद्वार नहीं किया तो आपका नाम बदनाम हो जायेगा, इसलिए आपको मेरा उद्वार करना ही होगा-इस प्रकार सन्त और गणिका पिंगला आपस में बात कर ही रहे थे कि अजामलि शराब के नशे में चुर, हाथ में बोतल लेकर आ गया।

दरवाजे पर सन्त को खड़ा देखकर हँसा और पूछा , महाराज क्या आप भी शराब पीयेंगे? आइए शराब पिलाऊंगा। सन्त ने सोचा आज गलत द्वार पर आ गया हूँ, पीछे हटने लगे, तो अजामिल ने मजाक किया, महाराज शर्माओ नहीं, यहाँ तो करोड़पति से लेकर भिखारी तक सब आते हैं, और मैं सबको नशा करवाता हूँ, सन्त ने प्रभु का नाम लिया और हिम्मत से कहा, अजामलि नशा करने नहीं, करवाने आया हूँ। अच्छा इसका मतलब आपके पास भी कुछ है? कौन सा नशा करवाते हो महाराज?

हे अजामलि जितनी मादक वस्तुएँ इस संसार में हैं उनकी मादकता तो केवल आठ-दस घण्टे ही रहती है और फिर उसका नशा उतर जाता है, लेकिन परमात्मा के नाम रूपी नशा जिसको एक बार चढ़ जाता है वह जिन्दगी भर उतरता नही हैं। संत ने कहा अजामलि मैंने भोजन तो कर लिया लेकिन अभी दक्षिणा लेनी बाकी है। अजामलि ने कहा महाराज मैंने आपको लूटा नहीं यही दक्षिणा समझो। मैं किसी को कुछ देता नहीं हूँ,मैं तो हमेशा लूटता ही हूँ। सन्त ने कहा अजामलि सन्त जिससे मिलते हैं उसको कुछ न कुछ देकर जाते हैं, अत: तुम हमारी एक बात मान लो, तुम्हारा कल्याण हो जायेगा।

अजामलि ने कहा महाराज वैसे तो मैंने आज तक किसी का कहना नहीं माना, लेकिन एक बात मानने से कल्याण हो जायेगा, तो मान लूंगा महाराज्। हे अजामलि ये मानवरूपी शरीर मिट्टी से बना हुआ एक खिलौना है जो काल रूपी समय ठोकर से एक दिन टूट जाएगा और और जिसको तु अपना कहता है वही सब मिलकर इस शरीर को चिता पर रखकर एक मुठ्ठी राख बना देंगे। यह मानवरूपी तानव हीरे के समान है इसको मोह माया के जाल में फंसकर व्यर्थ मत गंवाओ। ऐसा मौका बार-बार हाथ नहीं आता। तुम्हारी धर्मपत्नी पिगंला गर्भवती है, होनेवाले पुत्र का नाम नारायण रखना, यही मेरी तुमसे विनती है। अजामिल ने स्वीकृति दी और चरणों में प्रणाम किया और सन्त आशीर्वाद देकर चले गए।
नौ मास पूरे होने पर अजामलि के घर पुत्र का जन्म हुआ। नाम रखा गया नारायण बच्चे के प्रति माँ बाप का प्रेम होना स्वाभाविक है। अजामलि उठते-बैठते,साते-जागते, खाते-पीते, हर क्षण नारायण पुकारता रहता है। सन्त लेते तो केवल एक समय भोजन ही हैं परन्तु एक वाक्य ऐसा दे जाते हैं जिससे जीवन का कल्याण हो जात है। संतों के पास परमात्मा का नामरूपी धन ही है। रूपया पैसा जो भी आप को अर्पण करते हैं, उसे सन्त समाज की भलाई में लगा देते हैं। मीरा ने भी नामरूपी धसन पाकर आनन्द प्राप्त किया और अपनी भावभारी भंगिमाओं से भगवान् श्रीकृष्ण को प्राप्त किया। मीरा जहर का प्याला पी कर जब नाचने लगी तो उसकी सास ने सोचा कि यह पागल हो गई है इसलिए नाच रही है। लेकिन मीरा ने कहा माँ मैने परमात्मा के नामरूपी धन को पा लिया है।

मेरे सद्गरू ने मुझ पर कृपा करनके नाम रूपी धन को अनमोल है, मुझको दिया। धन-सम्पति को जितना खर्च करोगे उतनी घटती है, परन्तु नाम-धन को जितना बाटोंगे उतना बढ़ता जायेगा। मेरे प्रभु गिरधर नागर, श्रीकृष्ण कन्हैया हैं और मेरे सद्गुरू मेरे जीवनरूपी नैया को भव-जल से पार उतरने वाले नाविक हैं अत: मै ंनिश्चित होकर नाम के रस का पान करके इस लोक का आनन्द ले रही हूँ।

जो परमात्मा के नाम में लीन हो जाता है उसे परमात्मा अपने में लीन कर लेते हैं। इस प्रकार अजामलि भी रात-दिन नारायण-नारायण अपने पुक्ष् को पुकारता रहता था। नारायण पाँच साल का हो गया। बालक नारायण अपने यमराज के काले खोल खोल रहा था और अजामलि आराम से लेटा हूआ था, अचानक यमराज के काले दूत आ गए। देखकर अजामलि घबराया और अपने प्रियतम बेटे को पुकारने लगा। नारायण-नारायण बेटे जल्दी आओ।

हे नारायण बचाओ-बचाओ करते करते कण्ठ बन्द हो गया। जीभ नहीं हिलती हैं, अन्दर से हृदय की धडक़न से निकलने लगा, नारायण-नारायण। नारायण का नाम सुनकर नारयण के दूत दौड़े आए और यम दूतों से कहा, अजामलि के लिए हम विमान लाए हैं क्योंकि इसने नारयण का नाम पुकारा है, जो भगवान का नाम लेता है उसको परमात्मा अपनी शरण में लेता है।
यमदूतों ने कहा इसने भगवान को नहीं अपने पुत्र नारायण को पुकारा है।
नारायण के दूतों ने कहा यह सत्य है, लेकिन भगवान का नाम अनजाने में भी निकल जाता है तो भी उसका फल मिलता है। सन्तों ने जाप जपवाने े के लिए ही उसके पुत्र का नाम नारायण रखवाया था, इसलिए इसने पाच साल तक नारायण-नारायण, जितनी बार उच्चारण किया, उसका फल इसको मिलगा। अजामलि ने यह सब वार्ता सुनी। हृदय से अपने पापों का प्रायश्चित किया, जिसके कारण सारे पाप जल गए और सद्गति का प्राप्त हुआ। यह हैं नाम की महिमा। श्याम सुन्दर सज्जनों अपनी सन्तान का नाम भी परमात्मा के नाम पर रखो- श्याम सुन्दर, मन मोहन, श्रीकृष्ण, नारायण, हरि इत्यादि। किसी ने अपने बेटे का नाम रख गिरधर, लेकिन घर में प्यार से गिगला कहने लगे। बवपन में जो पुकारने लगते हैं वही नाम फिर सब पुकारने लगते हैं। शादीहो गई बच्चे हो गए, फिर भी नाम रहा गिगला। कहने का ताप्पर्य यही है कि जिस प्रकार अजामलि का पुत्र नारायण को पुकारने से आत्म कल्याण् हो गया, इासी प्रकार जब जीभ- प्रभु-नाम रटने लगेगी तो अभ्यास हो जायेगा और अन्त समय में पुकारने से करूणासागर दर्शन देने चले आयेंगे।

Related posts

सत्यार्थप्रकाश के अंश—50

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से —88

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस स्वामी सदानंद के प्रवचनों से-2

Jeewan Aadhar Editor Desk