एक बार एक साधु एक शहर में ठहरे। वे किसी से कुछ दान नहीं लेते। बस खाना मांगने के लिए चेले को शहर के धनी लोगों के घर भेजता। एक बार किसी ने चेले को कहा, तेरा गुरु बड़ा चटकोरा है। वह पैसे वालों के घर से पकवान मंगवाता है, गरीब के घर का खाना उसे पसंद नहीं है। वह दान न लेने का ढ़ोंग रचता है। 3 महिने नौकरी करो और सालभर वेतन लो, अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
चेले ने आकर साधु से पूछा, आप खाना सदा धनी लोगों के घरों से क्यों मंगवाते हो?? क्या वो रोजाना पकवान भेजते है??
साधु ने चुप्पी साधी ली..फिर संध्य करके खाना के समय साधु ने चेले को अपने साथ भोजन करने को बोला। चेले ने खुशी—खुशी में पोटली खोली। पोटली खोली तो दंग रह गया। पोटली में बासी बचा—खुचा खाना था। साधु ने काफी शांत स्वभाव से खाना खाया। जीवन आधार नवंबर माह प्रतियोगिता.. प्ले ग्रुप से दसवीं तक विद्यार्थी और स्कूल दोनों जीतेंगे सैंकड़ों उपहार.. अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे
चेले ने थोड़ा—सा खाकर पूछा, धनी लोग ऐसा खाना देते है तो गरीब बस्ती से खाना क्यों नहीं मंगवाते। साधु बोला— गरीब दिन—रात मेहनत करके अपने गुजारे लायक खाना जुटाता है, ऐसे उनसे मांगने अधर्म है। ये धनी लोग अपने घरों में इतना अधिक बनाते है कि इनसे खाया भी नहीं जाता। ये बचा हुआ गंदगी के ढ़ेर में फैंक देते है। जो खाना ये फैंकते है—वो खाना अब मुझे देने लगे। इससे ना तो उन्हें कोई नुकसान हुआ और खाने का सदुपयोग हो गया।
धर्मप्रेमी सु्ंदरसाथ जी, साधु..संत..फकीर.. कभी भी अन्न का दुरुपयोग सहन नहीं करते। वे सदा अन्न के एक—एक दाने का सदुपयोग करने की सोचते है। ध्यान रखना जो भी अन्न को झूठा छोड़ता है, वे अन्न देवता का अपमान करते है। साथ ही उनके जीवन में कभी शांति नहीं रह सकती।
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