उत्तर प्रदेश

‘वंदे मातरम’ पर मुस्लिम परिवार का बहिष्कार

आगरा,
एक तरफ जहां मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग वंदे मातरम गाने के खिलाफ हैं वहीं उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में एक मुस्लिम परिवार और उसके बच्चों को वंदे मातरम गाने के जुनून के कारण परेशानी झेलनी पड़ रही है। परिवार का आरोप है कि इस जुनून के कारण उनके बच्चों को मुस्लिम स्कूल में प्रवेश नहीं दिया गया।
गुलचमन शेरवानी ने बताया कि वह आगरा जिले के आजमपारा इलाके में रहते हैं। यह इलाका मुस्लिम बहुल है। वे लोग राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की तरह तीन रंगों वाले कपड़े पहनते हैं। परिवार का आरोप है कि उसके बच्चे को स्कूल से इसलिए निकाल दिया गया क्योंकि वे लोग वंदे मातरम गाते थे और उनके समुदाय ने इसका विरोध किया है।

उधर, परिवार के इस आरोप पर आजमपारा में स्कूल चलाने वाले असलम खान ने इस संबंध में बताया कि शेरवानी की बेटी ने पिछले साल स्कूल में प्रवेश लिया था लेकिन दूसरे अभिभावकों ने उन पर दबाव बनाया कि उसे स्कूल से निकाला जाए। उन्होंने कहा कि अगर वह ऐसा नहीं करते तो उनके स्कूल के दूसरे बच्चों के अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल से निकाल लेते।
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उन्होंने बताया कि मुस्लिम समुदाय के कई लोगों ने तिरंगे के रंग के कपड़े पहने जाने पर ऐतराज जताया था। उन्होंने यह भी बताया कि पीडि़त छात्रा के पिता वंदे मातरम गाते हैं, इसका भी समुदाय विरोध कर रहा था। उनके वंदे मातरम गाने के जुनून के चलते उनके खिलाफ फतवा भी जारी किया जा चुका है।
शेरवानी ने बताया कि दिल्ली जामा मस्जिद के इमाम मौलाना अहमद बुखारी ने उनके खिलाफ फतवा जारी किया था और उन्हें काफिर करार दिया था। उन्होंने बताया कि फतवा मिलने के बाद भी उन्होंने वंदे मातरम गाना नहीं छोड़ा। उनका दावा है कि जब वह 9 साल के थे, तब उनके परिवार ने उन्हें छोड़ दिया था क्योंकि वह राष्ट्रगान गाते थे। उसके बाद से वह अपने परिवार से कभी नहीं मिले।

हालांकि उनकी सतौली मां अजीजन का कहना है कि उन्होंने शेरवानी को कभी नहीं छोड़ा बल्कि वह व्यक्तिगत कारणों से घर छोड़कर गया था। वह उन लोगों के साथ नहीं रहना चाहता था। शेरवानी के छोटे भाई शाकिर अली ने बताया कि शेरवानी ने कभी किसी की नहीं सुनी। उसके मन में जो आता है, वह वही करता है। परिवार के सभी लोग उससे परेशान हो गए थे।
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शेरवानी के खिलाफ 2006 में सुन्नी उलेमा बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सैयद शाह बदरुद्दीन कादरी ने हैदराबाद में फतवा जारी किया था क्योंकि वह स्कूलों में वंदे मातरम गाता था। इस फतवे के खिलाफ गुलचमन ने प्रदर्शन किया था। साथ ही आगरा सिविल कोर्ट के सामने भारत माता की मूर्ति के नीचे धरना दिया था।

गुलचमन ने बताया कि वंदे मातरम गाना इस्लाम के खिलाफ नहीं है। स्कूलों में वंदे मातरम गाने के खिलाफ फतवा जारी होने का उन्होंने विरोध किया था। उन्होंने मांग की थी कि उस मौलाना के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए जिन्होंने फतवा दिया था लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। गुलचमन ने बताया कि उनके दोनों बच्चों का जन्म भी 15 अगस्त और 26 जनवरी को हुआ है। इससे उनका देश प्रेम जाहिर होता है। उन्होंने बताया कि उनकी शादी में भी सिर्फ वंदे मातरम हो बजवाया था और लोगों ने उसी पर डांस किया था। उधर, उनके पड़ोसी फरमान सैफी ने बताया कि गुलचमन की आदतों के कारण उन्हें समुदाय ने बहिष्कृत कर रखा है। वह तिरंगे की तरह कपड़े पहनते हैं। गुलचमन ने वंदे मातरम के खिलाफ जारी किए गए फतवे का विरोध किया था, इसलिए समुदाय का कोई व्यक्ति उनसे बात नहीं करना चाहता।

उधर, आगरा शहर के मुफ्ती अब्दुल खुवैद ने कहा कि उन्हें शेरवानी के मामले की जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि मुसलमान अगर अल्लाह के अतिरिक्त किसी और का गान करता है तो यह इस्लाम के खिलाफ है।
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Jeewan Aadhar Editor Desk

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