धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—66

कई कहते हैं कि गुरू तो परमात्मा है। नहीं पंच र्भाैतिक शरीर वाला कोई भी परमात्मा नहीं हो सकता, हाँ परमात्मा की ओर जाने वाले यह गुरू गाईड अवश्य हैं-
गुरूब्रह्म:, गुरूर्विष्णु:,गुरूर्देवो महेश्वर:।
गुरू: साक्षात् परब्रह्म: तस्मै श्रीगुरवे नम:

जो सन्त महात्मा को परमात्मा कहकर पूजा करवाते हैं वे बिलकुल पाखण्डी है इस श्लोक का गलत अर्थ लगाते हैं, इसका सही अर्थ है- गुरूब्रह्म:- जैसे ब्रह्म जी सृष्टि करते हैं, उसी प्रकार गुरू अपने शिष्य में अच्छे गुणों की रचना करते हैं। गुरूदेव नाम मंत्र का बीजारोपण करते हैं, इसीलिए ब्राह्मण कहलाते है।

गुरूर्विष्णु- विष्णु का कार्य है रक्षा करना। गुरू ने जो भक्ति का बीरोपण किया, उसमें समय-समय पर आकर सत्संग, ज्ञानरूपी पानी से सींचा करते हैं, इस रूप मे विष्णु है।
गुरूर्देवो महेश्वर:- महेश संहारर्ता हैं, तो गुरू भी अपनक शिष्यों के विकारों का संहार करते हैं इस दृष्टि से गुरूजन, शंकर कार्य करते हैं तो महादेव कहे जाते हैं। गुरू:साक्षात् परब्रह्म:- साक्षात् परब्रह्म: ज्ञान देते हैं ओर गुरू भी अपने शिष्य को ज्ञान देता है। इसीलिए ऐसे गुरू को प्रणाम है।

इस प्रकार गुरूजन गाईड हैं जो परमात्मा के परधाम को जानेवाला रास्ते को बता रहे हैं, चलना आपका काम हैं, चलने वाले ही अपनी मंजिल को पा सकेंगे। मंजिल चलकर कभी पथिक तक नही पहूंची, पथिक को ही चलकर अपनी मंजिल पानी होती है। धर्म प्रमियों गुरू परमात्मा तक पहूंचने का रास्ता बताते हैं, चलना आपको ही होगा।

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