कश्यप ऋषि के दो प्रमुख पुत्र हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्क्ष थे। हिरण्यकशिपु के वंश में निकुंभ नामक एक असुर उत्पन्न हुआ था, जिसके सुन्द और उपसुन्द नामक दो पराक्रमी पुत्र थे। यह दोनों पुत्र बड़े ही शक्तिशाली थे। इसकी शक्ति तब और बढ़ गई थी जब इन्होंने त्रिलोक्य विजय की इच्छा से विन्ध्यांचल पर्वत पर घोर तप किया। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें वर मांगने का कहा। दोनों ने ब्रह्माजी से अमरत्व का वर मांग लिया। लेकिन ब्रह्माजी ने इसे देने से इनकार कर दिया।
ऐसे में तब दोनों भाइयों ने सोचा कि अब क्या मांगें। फिर दोनों ने आपस में विचार विमर्श किया। दोनों ने सोचा कि वे दोनों ही भाई आपस में कभी लड़ते नहीं है। हमेशा प्रेम से रहते हैं और दोनों एक दूसरे से अथाह प्रेम करते हैं। उनको पूर्ण विश्वास था कि वे कभी भी एक दूसरे के खिलाफ कुछ भी नहीं करेंगे। इसीलिए यही सोचकर उन्होंने ब्रह्माजी से कहा कि उन्हें यह वरदान मिले कि एक-दूसरे को छोड़कर अस त्रिलोक में उन्हें कोई भी नहीं मार सके। ब्रह्मा ने कहा- तथास्तु।
ब्रह्मा से वरदान पाकर सुन्द और उपसुन्द ने त्रिलोक्य में अत्याचारों करने शुरू कर दिए जिसके चलते सभी ओर हाहाकार मच गया। सभी देवी और देवता देवलोक, इंद्रलोक से भाग खड़े हुए और सुन्द एवं उपसुन्न के अत्याचार और बढ़ने लगे। ऐसी विकट स्थिति जानकर ब्रह्मा ने दोनों भाइयों को आपस में लड़वाने के लिए तिलोत्तमा नाम की अप्सरा की सृष्टि की।
ब्रह्मा से आज्ञा पाकर तिलोत्तमा ने सुन्न और उपसुन्द के निवास स्थान विन्ध्य पर्वत की ओर प्रस्थान किया। एक दिन तिलोत्तमा को दोनों भाइयों ने टहलते हुए और गाते हुए देखा और दोनों ही उसे देखकर सुधबुध खो बैठे। जब उन्होंने सुध संभाली तब सुन्द ने उपसुन्द से कहा कि यह अप्सरा आज से मेरी पत्नी हुई। यह सुनते ही उपसुन्द भड़क गया और उसने कहा नहीं तुम अकेले ही यह निर्णय कैसे ले सकते हो। पहले इसे मैंने देखा है अत: यह मेरी अर्धांगिनी बनेगी।
बस फिर क्या था। दोनों ही भाई जो बचपन से ही एक दूसरे के लिए जान देने के लिए तैयार रहते थे अब वे एक दूसरे की जान लेने के लिए लड़ने लगे। बहुत समय तक उनमें लड़ाई चली और अंतत: वे एक दूसरे के हाथों मारे गए।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, धन, माया, जमीन और नारी के कभी आपस में नहीं लड़ना चाहिए। ये पतन का कारण बनते हैं। परिवार में और भाईयों में लड़ाई या मन—मुटाव का कारण ये ही बनते हैं। इसलिए परिवार में एकता चाहते हो तो इन चारों के बारे में निर्णय करते समय काफी सोच—विचार और विवेक का सहारा लेना चाहिए।