धर्म

ओशो -‘जस की तस धरि दीन्ही चदरिया’

जीवन की कठिनाई यही है कि जो दुखी है, वे संबंधित होना चाहते है; और जो आनंदित है, उन्हें संबंध का पता ही नहीं रह जाता! ऐसा नहीं कि वे संबंधित नहीं होते, लेकिन उन्हें पता नहीं रह जाता, कोई आकांक्षा नहीं रह जाती! अगर उनसे लोगो के संबंध भी बनते है, सदा एकतरफा होते है! दूसरे लोग ही उनसे संबंधित होते है! वे तो असंग, बिना छुये खड़े रह जाते है! दूसरे ही उन्हें छूते है, वे दूसरों को नहीं छू पाते! पर उनका आनंद जरूर जो उनके निकट आता है उन पर बरसता रहता है! वह वैसे ही बरसता रहता है, जैसे सूरज की किरणे बरसती है! वह वैसे ही बरसता रहता है, जैसे वृक्षों में खिले हुए फूल बरसते रहते है! किसी के लिए नहीं, वृक्ष के पास बहुत हो गए है इसलिए बहाव है! चीजें बाढ़ में आ गयी है और बरसती रहती है!
दुखी आदमी संबंध खोजता है, और जिनसे संबंध खोजता है, सिर्फ उन्हें दुखी छोड़ जाता है! किस आदमी ने संबंध बनाकर सुख पाया? किस आदमी ने संबंधित होकर किसी को सुख दिया? कोई नहीं दे पाता है! यह सारी पृथ्वी दुखी लोगो की पृथ्वी है! और यह सारी पृथ्वी दुखी लोगो के प्रयास से सुख पाने के और सुख देने के प्रयास से करोड़ गुना दुखी होकर नर्क बन गई है !!

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Jeewan Aadhar Editor Desk