धर्म

स्वामी राजदास : अनुशासन को मानिए

एक बार महात्मा गांधी और खान अब्दुल गफ्फार खान एक साथ एक ही जेल में थे। खान साहब और महात्मा गांधी की दोस्ती आध्यात्मिक स्तर की थी। जेल में महात्मा गांधी वहां के अनुशासन को अच्छी तरह मानते थे। वह जब कभी जेल में होते तो वहां के नियम-कायदे को भली-भांति जानकर उसका पालन करते थे। खान साहब को यह बात कुछ अखरती थी।

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जब कभी जेल अधीक्षक या उसके समकक्ष का कोई अधिकारी आता तो महात्मा गांधी उठकर खड़े हो जाते और उनसे बातें करते थे। खान साहब को यह ठीक नहीं लगता, मगर करते क्या। एक दिन गांधी जी से उन्होंने मुस्कराते हुए बोल ही दिया कि हमें पता है कि आप अंग्रेज अधिकारियों के आने पर उठकर क्यों बात करते हैं। गांधी जी ने पूछा- क्यों भाई? वह बोले यही कि ये अधिकारी हमें और दूसरे कैदियों को सिर्फ अंग्रेजी या हिंदी का अखबार देते हैं और आपको गुजराती समेत कई जबानों की पत्रिकाएं और अखबार देते हैं। गांधी जी मुस्करा दिए।

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अगली सुबह फिर उनके सामने कई अखबार आए। गांधी जी ने सिर्फ अंग्रेजी और हिंदी का अखबार उठाया बाकी के लिए मना कर दिया। यह सिलसिला महीना भर चला। अंग्रेज अधिकारी फिर आया और गांधी जी उससे वैसे ही खड़े होकर बात करते रहे। तब खान साहब को लगा कि उन्होंने गलत कह दिया।

अब खान साहब भी किसी अंग्रेज अधिकारी के आने पर उससे खड़े होकर बात करने लगे। एक दिन गांधी जी ने कहा, ‘हमें पता था, आपके व्यवहार में भी वह आ जाएगा जो हम सोचते हैं, इसलिए उस दिन कहना ठीक नहीं लगा। आप अहिंसा में हमसे बहुत आगे निकल चुके हैं। हो सके तो जहां रहिए वहां के अनुशासन को मानिए ताकि दूसरों को तकलीफ न हो। उनको हम अपने मूल व्यवहार से ही सही रास्ते पर ला पाएंगे। बदला लेकर या दुत्कार कर नहीं।’
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Jeewan Aadhar Editor Desk